प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा जी ,(सम्प्रति , कुलपति, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, नोएडा, उत्तर प्रदेश) ने बताया कि हमारे प्राचीन साहित्यों में सार्वभौम राष्ट्र की संकल्पना की गयी है तथा धर्म और राष्ट्र की व्यापक परिभाषाएं बतायी गयीं है।यजुर्वेद के 22 वें अध्याय में भी राष्ट्र की व्याख्या की गई है। हमारे देश में किसी भी कालखण्ड में राष्ट्रवाद धूमिल नहीं हुआ है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में आर्थिक राष्ट्रवाद और तकनीकी राष्ट्रवाद के द्वारा ही अपने राष्ट्र को हम विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में ला पाएंगे।
पूरी दुनियां में वैश्वीकरण 1980 के दशक के मध्य में शुरू हुआ। भारत ने 1991 में उसे अपनाया। विकसित देशों ने वैश्वीकरण के द्वारा दुनिया के सभी राष्ट्रों के बाजारों का अधिग्रहण किया। उन्होंने बाजार और निवेश का वैश्वीकरण किया जिससे कि उनके सामानों को बाज़ार मिल सके और दूसरे देशों की कम्पनियों के अधिग्रहण कर सकें।
जब चीनी कम्पनियों ने अमेरिकी और यूरोपीय कम्पनियों के अधिग्रहण करना शुरू किया तो दुनिया में De Globalisation (वि – वैश्वीकरण) का दौर शुरू हुआ। अमेरिकी सरकार ने चीनी कम्पनियों पर प्रशुल्क लगाना शुरू किया। फ्रांस ने 11 ऐसे उद्योग निर्धारित किये जिनका अधिग्रहण गैर फ्रांसीसी कम्पनियों के द्वारा नहीं किया जा सकता है। वर्तमान संकट के बाद रिवर्स वैश्वीकरण की शुरुआत हुई है। यही वो समय है जब हम आर्थिक राष्ट्रवाद और तकनीकी राष्ट्रवाद के द्वारा अपने देश का विकास कर सकते हैं। देश के लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं।
चीन ने भारतीय कम्पनियों को बीमार(sick) करने के लिए सस्ती डम्पिंग करनी शुरू की। उदाहरण के लिए चीन ने विभिन्न दवावों के संघटकों(ingredients) को शुरू में सस्ता बेचा जिसके कारण सभी भारतीय दवा कंपनियों ने कच्चा माल चीन से खरीदना शुरू कर दिया। आज चीन में इनका मूल्य कई गुना अधिक कर दिया है। ऑटोमोबाइल के लगभग सभी आगम (inputs) चीन से आयात किये जाते हैं।
पहले सोलर पैनल हमारे देश के अंदर उत्पादित किये जाते थे। परन्तु चीन के सस्ते डम्पिंग के कारण लगभग सभी देशी कंपनिया बन्द जो गयी। आज 90 प्रतिशत सोलर पैनल चीन से आयातित होता है। जिसके कारण प्रतिदिन चीन में 2 लाख रोजगार का सृजन हो रहा है और हम रोजगार गवां रहे हैं। जापान ने चीनी कंपनियों पर 100 प्रतिशत और अमेरिका ने 107 प्रतिशत एन्टी डंपिंग प्रशुल्क लगाया। परन्त हमारे देश मे चीनी कम्पनियों को प्रोत्साहित किया गया। पिछले 2 साल में लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपये का सोलर पैनल चीन से आयात किया गया।अब हम पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो चुके हैं। कपड़े के वैश्विक निर्यात में हमारी हिस्सेदारी घटी है। इस प्रकार हमारी आयात पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। निर्यात की क्षमता घट रही है। इससे हमारा विदेशी व्यापार घाटा और बढ़ेगा। रुपये की कीमत गिरेगी।
वैश्वीकरण के बाद भारत का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। हमारे आयात बढ़ते जा रहे हैं। इसी कारण अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट हो रही है। 1991 में 1 अमेरिकी डॉलर का मूल्य लगभग 18 रुपया था जो बढ़कर आज लगभग 76 रुपया हो गया है। हमारे देश में विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया गया फलस्वरूप हमारी तीन चौथाई कम्पनियां विदेशी स्वामित्व वाली हो गयी। उदाहरण के तौर पर एक समय में टेलीविजन और रेफ्रिजरेटर के उत्पादन में भारतीय कम्पनियों का योगदान शत प्रतिशत था लेकिन आज यह घटकर 20 प्रतिशत से भी कम रह गया है। इसके अतिरिक्त कार, मोबाइल फोन इत्यादि के उत्पादन में भी हम विदेशी कम्पनियों पर आश्रित हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहले मूल्य प्रवाह श्रृंखला (Downstream value chain) द्वारा इनसे संबंधित अन्य कम्पनियों को काम मिलता था और रोजगार में वृद्धि होती थी। परन्तु विदेशी कम्पनियों के अधिग्रहण से यह बन्द हो गया।
उन्होंने बताया कि इन समस्याओं से बचने के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद को अपनाना होगा। Made by India को अपनाना होगा। भले ही भारतीय कम्पनियों के उत्पाद विदेशी कम्पनियों के उत्पादों से मंहगे हो या गुणवत्ता में कम हो फिर भी हमें भारतीय उत्पादों को ही खरीदना होगा। तभी हम देश को आर्थिक ऊंचाई पर ले जा सकेंगे। उन्होंने जापान का उदाहरण देते हुए बताया कि केवल 4 प्रतिशत विदेशी कारें ही जापान में बिकती हैं जबकि भारत में केवल 13 प्रतिशत कारें made by Indian है। विश्व उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी लगभग 21.5 प्रतिशत, अमेरिका की 17.5 प्रतिशत, जापान की 10 प्रतिशत और भारत 3 प्रतिशत से भी कम। इस में भी तीन चौथाई हिस्सेदारी विदेशी कम्पनियों की है। इस तरह हमारी वास्तविक हिस्सेदारी अत्यंत कम है।
1986 में चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत से 15 प्रतिशत कम थी। आज लगभग 4.5 गुना है। इसका प्रमुख कारण चीन का आर्थिक राष्ट्रवाद है।
आर्थिक राष्ट्रवाद के साथ साथ तकनीकी राष्ट्रवाद पर भी जोर देना होगा। हमें घरेलू तकनीक का विकास करना होगा साथ ही साथ ऐसी नीतियां बनानी होगी जिससे इनका विकास हो और ज्यादा से ज्यादा लोग घरेलू तकनीक का ही उपयोग करें। चीन, जापान ,ताइवान, अमेरिका, यूरोपीय देश सभी तकनीकी राष्ट्रवाद की तरफ अग्रसर हो रहें हैं।
औद्योगिक क्लस्टर का नवीनीकरण करने की जरूरत है। सनराइज उद्योगों को प्रोत्साहित करना होगा। उन्होंने इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उदाहरण द्वारा यह बताया कि किस प्रकार इसे लेकर हम भविष्य की योजनाएं बना सकते हैं। हमे इसके लिए तकनीक के चुनाव और कच्चे माल की सुरक्षा और उपलब्धता पर भी ध्यान देने की जरूरत है। जैसे लिथियम बैटरी की जगह हाइड्रोजन फ्यूल पर आधारित तकनीक को अपनाना होगा। इससे प्रदूषण पर भी नियंत्रण होगा और हमारे लिए अनुकूल भी होगा।
चीन में ज्यादातर लोग विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की जगह COS यानी चाइनीस ऑपरेटिंग सिस्टम का ही प्रयोग करते हैं। इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है। इस रिवर्स वैश्वीकरण का फ़ायदा उठाना होगा। इसके लिए सही नीतियों की जरूरत पड़ेगी।
अपने आयातों को कम करना होगा। निर्यातों को बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्धी माहौल तैयार करना होगा।
जिन क्षेत्रों में हम कमज़ोर हैं वहाँ औद्योगिक सहायता संघ बनाने की जरूरत है। अपने IIT, NIT और तकनीकी संस्थाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। हम नदियों के पानी का समुचित प्रयोग कर अपने सिंचित भूमि को बढ़ा सकतें हैं और भविष्य में खाद्यान्न शक्ति बन सकते हैं। हम अपने ऑर्गेनिक खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ा कर दुनिया में उसका निर्यात कर सकते हैं। भविष्य में ऐसे खाद्यान्नों की मांग बढ़ेगी। हमारे पास दुनियां की तीसरी बड़ी तकनीकी रूप से दक्ष मानव संसाधन है। हम दुनियां में सबसे युवा देश है। अनेक विशेषताओं का कुशलता से प्रयोग कर हम विकसित राष्ट्र बन सकते हैं। आर्थिक राष्ट्रवाद और तकनीकी राष्ट्रवाद अपनाकर ही हम अपने राष्ट्र को विकसित राष्ट्रों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर पाएंगे।
डॉ रविशेखर सिंह अर्थशाश्त्र विभाग गाजीपुर पी.जी. कॉलेज पूर्वांचल विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश