SRFINDIA
  • Home
  • About us
  • Research
  • Gallary
  • Centers
  • Blogs
  • Events
  • Contact us
What's Hot

भारतीय भाषाओं की एकात्मता और पं. दीनदयाल उपाध्याय

April 8, 2022

घटता उत्पादन, बढ़ती बेरोजगारी और आत्मविश्वास से भरी सरकार

April 8, 2022

जान के साथ जहान भी संकट में!

April 8, 2022
Facebook Twitter Instagram
  • Home
  • About us
  • Research
  • Gallary
  • Centers
  • Blogs
  • Events
  • Contact us
Facebook Twitter YouTube
SRFINDIASRFINDIA
  • Home
  • About us
  • Research
  • Gallary
  • Centers
  • Blogs
  • Events
  • Contact us
SRFINDIA
Home » Blog » महामारी और महामंदी के बीच आत्मनिर्भर भारत का राग !
SRF

महामारी और महामंदी के बीच आत्मनिर्भर भारत का राग !

adminBy adminApril 8, 2022Updated:April 8, 2022No Comments47 Mins Read
Share
Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Email

12 मई शाम आठ बजे राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में  प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”कोरोना संकट का सामना करते हुए नए संकल्प के साथ मैं आज एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा कर रहा हूं। ये आर्थिक पैकेज आत्मनिर्भर भारत अभियान की अहम कड़ी के तौर पर काम करेगा। हाल में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थी, जो रिजर्व बैंक के फैसले थे और आज जिस आर्थिक पैकेज का एलान हो रहा है, उसे जोड़ दें तो ये करीब 20 लाख करोड़ रुपये का है। ये पैकेज भारत की जीडीपी का करीब-करीब 10 प्रतिशत है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि इस पैकेज के बारे में विस्तृत ब्योरा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बुधवार से अगले कुछ दिनों तक देंगी। मोदी ने कहा कि यह बड़ा संकट है लेकिन भारत कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ जारी अभियान में हार नहीं मानेगा और एक समृद्ध देश के रूप में उभरेगा। उन्होंने कहा, ”हमें स्वयं की रक्षा करनी है और आगे भी बढ़ना है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि यह आर्थिक पैकेज हमारे श्रमिकों, किसानों, ईमानदार करदाताओं, सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों और कुटीर उद्योगों के लिये होगा। उन्होंने कहा कि भारत पांच आधार स्तंभों।।।अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचा, शासन व्यवस्था, जीवंत लोकतंत्र और आपूर्ति श्रृंखला।।। पर खड़ा है। इस आर्थिक पैकेज में लैंड, लेबर, लिक्विडिटी पर जोर दिया गया है। यह आर्थिक पैकेज देश के उस किसान के लिए है, जो हर मौसम में देशवासियों के लिए दिनरात मेहनत करता है। यह पैकेज हमारे मध्यमवर्ग के लिए है जो देश की तरक्की में योगदान देता है। यह पैकेज उद्योग जगत के लिए है जो देश को आगे बढ़ने में मदद करता है।

 

विशेष आर्थिक पैकेज: आत्मनिर्भर भारत अभियान

प्रधानमंत्री द्वारा आर्थिक पैकेज की घोषणा के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगले पांच दिन तक चरणबद्ध ढंग से अर्थव्यवस्था की मदद के लिए कई उपायों की घोषणा की। यह आर्थिक पैकेज लोगों, उद्धमियों, कामगारों और अर्थशात्रियों के लिए निराशाजनक रहा। इसमें राजकोषीय प्रोतसाहन महज एक प्रतिशत के आसपास रहा। ज्यादातर उपाय तरलता बढ़ाने को लेकर थे जिसकी घोषणा रिजर्व बैंक ने की थी। इन उपायों में सरकार का ध्यान अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को नकद सहायता मुहैया कराने के अलावा सुधारों पर भी केंद्रित था। कई नीतिगत उपाय तो पहले की गई घोषणाओं का दोहराव हैं।

सप्लाई चेन को दुरुस्त करने के लिए मोदी सरकार ने 20 लाख 97 हजार 53 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। वित्त मंत्री ने 13 मई को 5.94 लाख करोड़ रुपये के कदमों की घोषणा की, जिसके तहत छोटे व माध्यम उद्यमों एमएसएमई, करदाताओं, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों एनबीएफसी, बिजली वितरण कंपनियों, रियल एस्टेट क्षेत्र, संगठित क्षेत्र के रोजगार और ठेकेदारों को राहत की घोषणा शामिल थी। इनमें से ज्यादातर घोषणाएं नकदी मुहैया कराए जाने से संबंधित थीं। विश्लेषकों का कहना है कि इसका राजकोष पर सीधा असर 19,800 से 41,000 करोड़ रुपये के बीच पड़ेगा। एक वरिष्ठ सरकारी सूत्र ने कहा कि इन पर आवंटन 35,000 करोड़ रुपये के करीब है, जिसमें केंद्र की ओर से नकदी समर्थन की शुरुआती घोषणा शामिल है। यह कई वर्षों में दिया जा सकता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि पीएम गरीब कल्याण योजना, जिसके तहत गरीबों को मुफ्त राशन और खाते में नकद मदद दी गई, के जरिए 1.92 लाख करोड़ रुपए की मदद दी गई। इसमें टैक्स छूट की वजह से 7,800 रुपए का राजस्व नुकसान और पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए घोषित 15 हजार करोड़ रुपए भी शामिल हैं। इसके अलावा एमएसएमई सेक्टर के लिए 3 लाख करोड़ रुपए के बिना गारंटी आसान लोन के रूप में देने की व्यवस्था की गई। कारोबारियों और कर्मचारियों की मदद के लिए ईपीएफ अंशदान के रूप में 2800 करोड़ रुपए की मदद दी गई। ईपीएफ अंशदान में कटौती से 6750 करोड़ रुपए की लिक्विडिटी बढ़ेगी। एनबीएफसी/एचएफसी/ एमएफआई के लिए 30 हजार करोड़ रुपए की लिक्विडिटी का प्रावधान किया गया। टीडीएस/टीसीएस में 50 हजार रुपए की कटौती की गई।

14 मई को वित्त मंत्री ने 3.1 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की, जिसमें से सीधा खर्च 3,500 करोड़ रुपये खाद्यान्न पर है, जो 8 करोड़ विस्थापित मजदूरों को 2 महीने के लिए दिया जाना है। मुद्रा शिशु लोन योजना के तहत 1500 करोड़ रुपए की ब्याज राहत की घोषणा की गई। फेरवीवालों के लिए 10 हजार रुपए तक कर्ज योजना की घोषणा करते हुए 5000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। हाउजिंग स्कीम के जरिए 70 हजार करोड़ रुपए की सब्सिडी, नाबार्ड के जरिए 30 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त सहायता और केसीसी के जरिए 2 लाख करोड़ रुपए अतिरिक्त ऋण की व्यवस्था किसानों के लिए की गई।

15 मई को ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के लिए की गई 1.5 लाख करोड़ रुपये की घोषणाओं में अगले ढाई वित्त वर्षों के दौरान करीब 35,000 करोड़ रुपये दिए जाने की उम्मीद है। यह माइक्रो फूड इंटरप्राइजेज, मत्स्य संपदा योजना, हर्बल खेती को प्रोत्साहन, मधुमक्खी पालन आदि के लिए दिया जाएगा। इस तीसरी किस्त में वित्त मंत्री ने फूड माइक्रो एंटरप्राइजेज के लिए 10 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया। प्रधानमंत्री मतस्य संपदा योजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपए का आवंटन किया गया। टॉप टू टोटल के लिए 500 करोड़ रुपए, कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 1 लाख करोड़ रुपए निवेश का ऐलान किया गया। पशुपालन के लिए ढांचागत विकास पर 15 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। हर्बल खेती के लिए 4 हजार करोड़ रुपए रखे गए। मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपए दिए गए। इस किस्त में वित्त मंत्री ने कुल 1.50 लाख करोड़ रुपए का ऐलान किया। 

16 मई की चौथी किस्त में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 8,100 करोड़ रुपए वायबिलिटी फंड की घोषणा की और इसके अलावा कई बड़े आधारभूत सुधारों का ऐलान किया गया। कोयला, रक्षा, विनिर्माण, विमानन, अन्तरिक्ष, बिजली वितरण आदि क्षेत्रों में नीतिगत सुधारों पर जोर दिया गया है। कुल 63,000 करोड़ रुपये में 8,100 करोड़ रुपये अस्पताल और स्कूल जैसे सामाजिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च होगा। 17 मई की पांचवीं किस्त में वित्त मंत्री ने 40 हजार करोड़ रुपए मनरेगा के लिए आवंटित किए। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ने भी 9 लाख करोड़ रुपए से अधिक की लिक्विडिटी उपायों की घोषणा की है, जिसका वास्तविक प्रभाव 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक है।  

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आर्थिक पैकेज की आखिरी किस्त में  बताया कि किस मद में कितना पैसा खर्च या आवंटित किया गया है। उन्होंने इस पैकेज का पूरा हिसाब दिया है। 

20 लाख करोड़ रुपए का गणित कहां कितना खर्च

कहां खर्च

कितना खर्च

पीएम गरीब योजना, स्वास्थ्य के लिए आवंटन और टैक्स छूट

1.92 लाख करोड़ रुपए

एमएसएमई सेक्टर और पावर सेक्टर को मदद

5.94 लाख करोड़ रुपए

श्रमिकों और कृषि के लिए मदद

3.10 लाख करोड़ रुपए

माइक्रो एग्री इन्फ्रा, मत्स्य पशुपालन, मधुमक्खी पालन

1.5 लाख करोड़

वीजीएफ, मनरेगा

48,100 करोड़ रुपए

आरबीआई की ओर से घोषणा

8 लाख करोड़ रुपए

कुल

20,97,063 करोड़ रुपए

 आर्थिक पैकेज के कुछ तात्कालिक और दूरगामी प्रभाव वाले कदम

पांचवीं कड़ी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आपदा को अवसर में बदलना है। संकट का दौर अवसर के द्वार भी खोलता है। आज आत्मनिर्भर भारत बनाने की जरूरत है। इसीलिए कोरोना के बाद की तैयारियों पर हमारा ध्यान है। वित्त मंत्री ने बताया कि 12 लाख ईपीएफओ धारकों को लाभ पहुंचा है। जनधन के 20 करोड़ महिला लाभार्थियों के खाते में पैसे पहुंचाए गए हैं। उज्जवला योजना के तहत गरीबों को मुफ्त गैस सिलिंडर दिए गए। 6 करोड़ 81 लाख गैस सिलेंडर दिए गए।  8.19 लाख किसानों के खाते में 16,394 हजार करोड़ रुपये डाले गए। 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए भी राशन की सुविधा घोषित की गई। रास्ते में इन्हें खाना दिया गया। कोरोना योद्धाओं पर हमला होता था, इसे लेकर महामारी एक्ट में संशोधन किया गया। कोविड महामारी से पहले एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी, अब 3 लाख से अधिक पीपीई किट रोज बनाए जाते हैं, रोजाना लाखों मास्क भी बन रहे हैं। स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 50 लाख रुपये के बीमा की घोषणा हुई है। 

‘आत्मनिर्भर भारत पैकेज’ के अंतिम चरण में सरकार ने सभी क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने, लोकउपक्रमों की संख्या कम करने, मनरेगा के लिए आवंटन और स्वास्थ्य पर निवेश बढ़ाने और कंपनी कानून और दिवालिया कानूनों में बड़े बदलावों की घोषणा की। सरकार नई लोक उपक्रम नीति लाएगी जिसमें सभी सेक्टरों को निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए खोला जाएगा। लोक उपक्रम चुनिंदा रणनीतिक क्षेत्रों में ही कारोबार कर सकेंगे। इन सेक्टरों को नोटिफाई किया जाएगा। इन सेक्टरों में भी कम से कम एक और अधिक से अधिक चार लोक उपक्रमों की ही मौजूदगी होगी। इन क्षेत्रों में भी निजी कंपनियां कारोबार कर सेकेंगी। अन्य क्षेत्रों में काम करने  वाले लोक उपक्रमों का निजीकरण किया जाएगा। यदि किसी रणनीतिक क्षेत्र में चार से अधिक सार्वजनिक कंपनी होगी तो उनका विलय या निजीकरण किया जाएगा।

केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने बताया कि 24 मार्च 2020 से अब तक लॉकडाउन अवधि के दौरान प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत, लगभग 9.55 करोड़ किसान परिवारों को 19,100.77 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है। देश के करीब 10 करोड़ किसानों के लिए बड़ा सहारा बनी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ प्रवासी मजदूरों को भी मिल सकता है। बशर्ते वे इसकी शर्तें पूरी कर रहे हों। इसमें खासतौर पर रेवेन्यू रिकॉर्ड में नाम और बालिग होना जरूरी है। अगर किसी का नाम खेती के कागजात में है तो उसके आधार पर वो अलग से लाभ ले सकता है। भले ही वो संयुक्त परिवार का हिस्सा ही क्यों न हो। किसानों को डायरेक्ट मदद देने वाली पहली स्कीम में परिवार का मतलब है पति-पत्नी और 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे। उसके अलावा अगर किसी का नाम खेती के कागजात में है तो उसके आधार पर वो अलग से लाभ ले सकता है। केंद्र सरकार गरीब और जरूरतमंद लोगों को वित्तीय रूप से मदद करने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाती है। सरकार की अधिकतर योजनाएं गरीब, विकलांग, विधवा, वरिष्ठ नागरिक आदि के लिए होता है। इसके तहत उनके खाते में सीधे तौर पर कैश या अन्य जरूरी चीजें भी मुहैया कराई जाती हैं।

शहरों से गांवों में लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार मुहैया कराने के लिए 2020 21 के लिए मनरेगा में 40,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि देने की घोषणा के साथ इस वर्ष के लिए योजना के तहत आवंटित राशि 1,01,500 करोड़ रुपये हो गई, जिसमें से 11,500 करोड़ रुपये पिछले वर्ष के बकायों के भुगतान के लिए खर्च किया जाएगा। बकायों को बाहर निकाल दें तो योजना पर अनुमानित खर्च 90,000 करोड़ रुपये है। मनरेगा के तहत काम मॉनसून के महीनों में भी जारी रहेगा, ताकि लौट रहे श्रमिकों की जरूरत पूरी की जा सके। अतिरिक्त फंड के आवंटन से योजना के तहत मुहैया कराए जा रहे कार्यों में भी सुधार किया जा सकता है जिसमें अप्रैल और मई महीने में भारी कमी आई थी। ऐसा लॉकडाउन और कई जगहों पर काम बंद होने के कारण हुआ था। मनरेगा के विस्तार से श्रम की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है क्योंकि गांवों में विस्थापित हो चुके ज्यादातर लोग वापस नौकरियों पर नहीं लौटेंगे। इसकी वजह से निर्माण व परिवहन क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है।

दिवालिया कानून में बदलाव होगा। कोविड संकट के समय किसी पर दिवालिया कार्रवाई न हो इसके लिए न्यूनतम सीमा एक लाख से बढ़ाकर एक करोड़ कर दी गई है। एक वर्ष तक दिवालिया घोषित करने पर रोक, लघु व मझोले उद्योगों (एमएसएमई) को मदद मिलेगी। आईबीसी एक्ट के तहत कोविड 19 के दौरान कर्ज को डिफाल्ट की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा। जो छोटी तकनीकी व प्रक्रियात्मक चूक होती है, उसे आपराधिक प्रक्रिया से निकाल दिया जाएगा। सात कंपाउंडेबल ऑफेंसेस को पूरी तरह हटा दिया गया है। कॉर्पोरेट के लिए ईज ऑफ डुइंग में सुविधा को और बढ़ाया जाएगा।    

मुफ्त भोजन की सुविधा

8 करोड़ प्रवासियों और फंसे हुए मजदूरों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए आत्म-निर्भर भारत’ पैकेज के अधीन भारत सरकार द्वारा 08 लाख टन गेहूं/चावल तथा 39000 मिट्रिक टन दालों का आवंटन जारी किया गया है। ऐसे प्रवासी या फंसे हुए मजदूर जो न तो एनएफएसए के अधीन आते हैं और न ही वे राज्य की किसी अन्य पीडीएस स्कीम के अधीन कवर किए गए हैं उनको इस योजना से काफी लाभ मिला है। इन 8 करोड़ प्रवासियों के लिए 2 माह अर्थात् मई और जून, 2020 के लिए प्रति व्यक्ति प्रति माह निशुल्क पांच किलोग्राम गेहूं/चावल और उनके 1.96 करोड़ परिवारों के लिए प्रति परिवार प्रति माह के हिसाब से एक किलोग्राम चना वितरित किया जा रहा है। वितरण का यह कार्य 15 जून, 2020 से पहले पूरा होने की उम्मीद है। इस मद में 3500 करोड़ रुपए का व्यय होगा, जिसे केन्द्र सरकार वहन कर रही है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अधीन 80 करोड़ एनएफएसए लाभार्थियों के लिए सभी राज्यों को अप्रैल से जून 2020 तक की तीन माह की अवधि के लिए निशुल्क पांच किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह अतिरिक्त खाद्यान्न और एक किलोग्राम प्रति परिवार प्रतिमाह चना/दाल वितरित किया जा रहा है। भारत सरकार इस योजना का शत-प्रतिशत वित्तीय भार वहन कर रही है, जो लगभग 5000 करोड़ रुपए है। 

स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण पहल

स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में नए बदलाव होने जा रहे हैं । स्वास्थ्य पर सरकारी निवेश बढ़ाया जाएगा। बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा ढाँचों को मजबूत बनाया जायेगा। हर जिला अस्पताल में संक्रामक रोगों के लिए विशेष ब्लॉक बनाये जायेंगे। प्रखंड स्तर पर जन स्वास्थ्य प्रयोगशालायें बनाई जाएगी। अनुसंधान के प्रोत्साहित किया जायेगा। महामारी के समय भी लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मिले ऐसी व्यवस्था की जाएगी। जमीनी स्तर पर हेल्थ व वेलनेस सेंटर को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बढ़ाया जाएगा। जिला स्तर के अस्पताओं को भविष्य की महामारी से लड़ने के लिए युक्त बनाया जाएगा। संक्रामक रोगों का ब्लॉक बनेगा। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन का ब्लूप्रिंट तैयार किया जाएगा।11 करोड़ एचसीक्यू टेबलेट का उत्पादन किया गया, टेस्टिंग और लैब किट के लिए 550 करोड़ रुपये दिए गए। कोविड संकट के समय ऑनलाइन शिक्षा पर जोर है। अब डीटीएच के जरिए शिक्षा दी जाएगी। ऑनलाइन पढ़ाई के लिए 12 नए शैक्षणिक चैनल शुरू हो रहे हैं। ई-पाठशाला में 200 नई पुस्तकें शामिल की गई हैं। पीएम ई-विद्या कार्यक्रम चलाया जाएगा जिसके तहत डिजिटल शिक्षा दी जाएगी। वन नेशन, वन डिजिटल प्लेटफॉर्म के तहत दीक्षा कार्यक्रम चलाया जाएगा। दीक्षा प्लेटफॉर्म तक अभी तक 61 करोड़ लोग पहुंचे हैं। हर कक्षा के लिए एक चैनल निर्धारित किया जाएगा। टीचरों, अभिभावकों के लिए मनोदर्पण कार्यक्रम चलाया जाएगा। बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर काम किया जाएगा। दिव्यांग बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा मिलेगी। 

केंद्र की ओर से राज्यों को कुल 46038 हजार करोड़ रुपये दिए गए। अप्रैल और मई में 12,390 करोड़ रुपये दिए गए। एसडीआरएफ फंड से 110,92 करोड़ रुपये जारी किए गए। कोविड 19 से लड़ने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को 4113 करोड़ दिए। राज्यों की ओवरड्राफ्ट की सीमा 14 से बढ़ाकर 21 दिन की गई। एक तिमाही में ओवरड्राफ्ट की सीमा 32 दिन से बढ़ाकर 50 प्रतिशत की गई। राज्यों के लिए उधार सीमा तीन से बढ़ाकर पांच प्रतिशत की गई। 

आने वाले वर्षों में देश में महामारी के हिसाब से देश में स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचा तैयार करना काफी महत्वपूर्ण है।  इसमें हर जिले में छूत से जुड़ी बीमारियों के लिए अलग से ब्लॉक बनाने और सभी जिलों व ब्लॉक स्तर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएं बनाने की योजना शामिल है, जिससे महामारी पर काबू पाया जा सके। स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया और देश के शीर्ष शोध निकाय इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के माध्यम से एक स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय संस्थागत प्लेटफार्म बनाने की बात कही है। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के तहत राष्ट्रीय डिजिटलर स्वास्थ्य खाके को लागू करने का भी उल्लेख है। भारत में स्वास्थ्य पर होने वाला व्यय, जिसमें कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र सभी शामिल हैं, सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी का मात्र 3.6प्रतिशत है। स्वास्थ्य पर होने वाला सार्वजनिक व्यय जीडीपी का मात्र 1.28प्रतिशत है।  2017 18 में स्वास्थ्य पर होने वाला प्रति व्यक्ति आय मात्र रुपया 1657 था जबकि अमेरिका में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति व $10000 से अधिक है और कुल व्यय वहां की जीडीपी का 18प्रतिशत है। यहाँ मोदी सरकार ने 2025 तक स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय को बढ़ाकर जीडीपी के 2.5प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। 

सुदृढ़ आपूर्ति श्रृखला

प्रधानमंत्री मोदी भारत की मैन्युफैक्चरिंग, सप्लाई चेन और निर्यात में होने वाली समस्याओ को  फिक्स करने का प्रयास कर रहे है। अकेले एक सुदृढ़ सप्लाई चेन समृद्ध भारत की नींव रख देगी। इस सप्लाई चेन को चलाने में राजमार्गो, तीव्र गति से चलने वाली मालगाड़ी, उसके लिए अलग से रेल पटरी, बंदरगाह, एयरपोर्ट, ट्रक, फ्रीजर वाले ट्रक, शिप, हवाई जहाजों, बिजली, ब्रॉडबैंड इंटरनेट इत्यादि का अभिन्न योगदान है। कोरोना संकट ने हमें इंफ्रास्ट्रक्चर, लोकल मैन्युफैक्चरिंग, लोकल मार्किट, लोकल सप्लाई चेन का भी महत्व समझाया है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने  जोर दिया कि अर्थव्यवस्था में डिमांड और सप्लाई चेन का चक्र आत्मनिर्भर भारत का पाँचवाँ पिलर होगा जिसे पूरी क्षमता से इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है। उनके अनुसार यह समय की मांग है कि भारत ग्लोबल सप्लाई चेन में बड़ी भूमिका निभाए और कड़ी स्पर्धा के लिए भी तैयार रहे। फिर वे कहते है कि देश में मांग बढ़ाने के लिए, डिमांड को पूरा करने के लिए, हमारी सप्लाई चेन की हर कड़ी का सशक्त होना जरूरी है। यदि हमारी सप्लाई चेन, हमारी आपूर्ति की उस व्यवस्था को हम मजबूत कर सकें जो कि कृषि और सहायक गतिविधियों तथा लघु व मध्यम उद्योगों से जुडी हो तो सही मायने आत्मनिर्भर विकास संभव हो पायेगा । 

कृषि व सहायक गतिविधियों को बढ़ावा देने की ठोस पहल

आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। जो लोग कृषि पर निर्भर हैं उनमें से 85 प्रतिशत सीमांत और मध्यम किसान हैं। यह भारत सरकार के 2020 के आर्थिक सर्वे पर आधारित आंकड़े हैं। पिछले 2 महीने में कृषि और किसानों को सपोर्ट करने के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। लॉकडाउन के बीच में मिनिमम सपोर्ट प्राइस के रूप में 74,300 करोड़ रुपये की कृषि उपज खरीदी गई है। पीएम किसान फंड के माध्यम से 18,700 करोड़ रुपये किसानों को दिए गए हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दावे के रूप में ₹6400 करोड़ का भुगतान किया गया है। लॉकडाउन के दौरान कॉपरेटिव ने दूध की प्रोसेसिंग बढ़ा दी। रोजाना 560 लाख लीटर रोज दूध की प्रोसेसिंग की गई। जबकि इस दौरान औसत खपत 360 लाख लीटर प्रतिदिन ही रही। इस अवधि में कॉपरेटिव को ₹4100 करोड़ दिए गए जिससे कि 111 करोड़ लीटर एक्स्ट्रा प्रोक्योर्ड मिल्क के लिए भी पेमेंट किया जा सके। इस अवधि में पशु पालन करने वाले को 5,000 करोड़ रुपये की तरलता उपलब्ध कराने की सरकार ने कोशिश की है। इसमें दो प्रतिशत इंटरेस्ट सब्वेंशन भी शामिल है।

मछली पालन के लिए सरकार ने इस अवधि में काफी नई-नई कोशिश की है और इससे भी मछली पालन करने वाले किसानों को काफी फायदा मिला है। एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए मोदी सरकार ने ₹1,00,000 करोड़ का प्रावधान किया है। इंफ्रास्ट्रक्चर बनाकर इससे किसानों को उपज संरक्षित करने में मदद मिलेगी। कृषि उपज के बाद भारत में कोल्ड चेन की कमी और हार्वेस्ट मैनेजमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से काफी फसल बर्बाद होता है। इसके लिए सरकार ने 1,00,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। हर्बल उत्पादों की खेती, मेडिसिनल प्लांट, मधुमक्खी पालन आदि के माध्यम से किसानों की आय बढ़ने के ठोस उपाय किये गये हैं।

सरकार माइक्रो फूड एंटरप्राइजेज (एमएफई) को बढ़ावा देने के लिए 10,000 करोड़ रुपये की स्कीम लाएगी। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हम स्थानीय सामान के लिए वोकल बनें और लोकल से ग्लोबल बनने की कोशिश करें। यह इसी लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेगा। इस स्कीम से माइक्रो फूड एंटरप्राइजेज को बड़ी मदद मिलेगी। बिहार में मखाना होता है, इसी तरीके से तमिलनाडु में हल्दी होती है, यूपी में आम होता है, जम्मू कश्मीर में केसर होता है, नॉर्थ ईस्ट में बांस से जुड़े उत्पाद बनाए जा सकते हैं। आंध्र प्रदेश में मिर्च से जुड़ी चीजें बनाई जा सकती हैं। तमिलनाडु में वहां के स्थानीय उत्पादों से चीज बनाई जा सकती है। इनके लिए सरकार ने ₹10,000 करोड़ का प्रावधान किया है।

भारत सरकार एनिमल हसबेंडरी इन्फ्राट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के रूप में 15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान कर रही है। देश में दूध उत्पादन के क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में निजी निवेश को भी आकर्षित करने की कोशिश की जानी चाहिए। भारत सरकार का उद्देश्य है कि डेयरी प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और कैटल फीड इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी निवेश को आकर्षित किया जाए। एनिमल हसबेंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के रूप में ₹15,000 का प्रावधान किया जा रहा है। इसमें इस तरह के प्लांट की स्थापना के लिए इंसेंटिव दिए जाएंगे। लॉक डाउन की अवधि में किसानों से जुड़े बहुत से सप्लाई चेन बाधित हुए हैं। किसान अपनी कृषि उपज मार्केट में बेचने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। इस वजह से भारत सरकार ने टोमेटो, अनियन और पोटेटो के हिसाब से इनको सपोर्ट करने के लिए 500 करोड़ रुपये के फंड का प्रावधान किया है

सरकार कृषि उपज के बिक्री के मामले में सुधार लागू करना चाहती है। यह बेहद महत्वपूर्ण और प्रभावी सुधार है। इस कदम के तहत किसान एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी में सिर्फ लाइसेंसी को अपना कृषि उपज बेचने के लिए बाध्य नहीं होंगे। सरकार इस नियम में संशोधन करने जा रही है। इस तरह की बाध्यता किसी औद्योगिक उत्पाद में नहीं है। इस वजह से किसानों को उनकी उपज का कम पैसा मिल पाता है। इसके लिए एक केंद्रीय कानून बनाया जा रहा है जिससे कि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिले। वह एक राज्य से दूसरे राज्य में अपनी कृषि उपज भेज सकें और ई-ट्रेडिंग के लिए फ्रेमवर्क बनाया जा रहा है

 

‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’

आर्थिक पैकेज की दूसरी किस्त में वित्त मंत्री ने प्रवासी मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों और छोटे किसानों को लेकर 9 बड़ी घोषणाएं की। खासकर वन नेशन वन राशन कार्ड योजना को लेकर बहुत बड़ा ऐलान किया। वित्त मंत्री ने कहा है कि अगस्त 2020 तक राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी के तहत पीडीएस की 83प्रतिशत आबादी वाले देश की 23 राज्यों में 67 करोड़ लाभार्थियों को वन नेशन, वन राशन कार्ड योजना से जोड़ दिया जाएगा। साथ ही 2021 के मार्च तक 100 प्रतिशत नेशनल पोर्टेबिलिटी का लक्ष्य भी हासिल कर लिया जाएगा। अब किसी भी राज्य के लोग दूसरे राज्यों में भी अगर रहते हैं तो वहां पर राशन कार्ड दिखाकर राशन ले सकेंगे। जिस तरह से आप अगर अपना मोबाइल नंबर को बरकरार रखते हुए दूसरे टेलीकॉम कंपनी की सेवा लेते हैं। इसी तरह आप राशन कार्ड पोर्टेबिलिटी के तहत देश में कहीं रहेंगे अपने हिस्से का राशन ले सकते हैं। अगर मान लीजिए कि एक राशनकार्ड पर पांच मेंबर हैं और पांचों अलग-अलग राज्यों में रह रहें तो भी वह अपने हिस्से का राशन इन राज्यों से उठा सकते हैं।

‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड योजना’ के तहत देशभर के नागरिक अपने हिस्से का राशन देश के किसी भी राशन की दुकान से ले सकेंगे। यह योजना अब तक आन्ध्र प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, त्रिपुरा, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और दमण-दीव सहित 17 राज्यों में लागू हो चुकी है। जून 2020 तक ओडिशा, नागालैंड और मिजोरम राज्यों के जुड़ जाने से देश के कुल 20 राज्यों में यह योजना कार्यान्वित हो जाएगी। 1 अगस्त 2020 को उत्तराखण्ड, सिक्किम और मणिपुर सहित 3 और राज्य इस योजना से जुड़ जाएंगे। पूरे देश में 31 मार्च 2021 तक यह योजना लागू हो जाएगी। यह एक बहुत बड़ा परिवर्तन है जिससे ना सिर्फ प्रवासियों को सुविधा होगी बल्कि इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार और लीकेज में भी कमी आएगी।

 

सरकार पर बजटीय बोझ

21 लाख करोड़ रुपये के पैकेज से सरकारी वित्त को गहरा झटका लगने की आशंका थी लेकिन विस्तृत ब्योरा आ जाने के बाद यह स्पष्ट है कि सरकार पर जीडीपी के एक प्रतिशत के लगभग बोझ पड़ेगा। सरकार के बजट से वास्तविक अतिरिक्त व्यय लगभग 2 लाख करोड़ रुपये का है। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत पैकेज के आकार का लगभग 10 प्रतिशत है। इसमें छोड़ दिया गया राजस्व, मुफ्त खाद्यान्न वितरण के लिए किया गया आवंटन और दी गई नकदी, मनरेगा में बढ़ोतरी, ब्याज छूट, सामाजिक बुनियादी ढांचे में व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण में बढ़ोतरी और नकदी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के खजाने से दिया गया शुरुआती समर्थन व दिया जाने वाला कर्ज शामिल है । इसके अलावा राजकोष पर पडऩे वाला बोझ जरूरी नहीं कि वित्त वर्ष 2020 21 में ही पड़े। कुल राजकोषीय बोझ के एक हिस्से का वित्तपोषण सरकार अगले ढाई वित्त वर्षों के दौरान करेगी। शेष लगभग 18 लाख करोड़ रुपये अन्य मदों, आरबीआई के नकदीकरण प्रावधान तथा पुनर्वित्त के उपायों, वित्तीय क्षेत्र के ऋण, राज्य सरकारों की उधारी तथा सरकारी उपक्रमों की फंडिंग से आएंगे।

लगभग 2 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त फंडिंग में से 89 प्रतिशत का समायोजन वित्त मंत्री के कुछ दिन पूर्व के निर्णयों से पहले ही हो चुका है। 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों तथा 61 लाख पेंशन भोगियों के महंगाई भत्ते की तीन किस्तों को जुलाई 2021 तक निलंबित करने से केंद्र को 2020 21 में 37,530 करोड़ रुपये की बचत होगी, जो जीडीपी का 0.2 प्रतिशत है। दूसरा पेट्रोल-डीजल पर शुल्क बढ़ाना। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट के बीच इससे सरकार खुदरा कीमत पर असर डाले बिना अच्छा खासा राजस्व जुटाएगी। पेट्रोल-डीजल के इस्तेमाल में करीब 12 प्रतिशत की गिरावट के बावजूद सरकार का अतिरिक्त राजस्व 1.4 लाख करोड़ रुपये बढ़ेगा यानी जीडीपी का 0.7 प्रतिशत। अप्रैल में पेट्रोल और डीजल की खपत क्रमश: 60 प्रतिशत और 56 प्रतिशत घटी है। मई में यह गिरावट थम सकती है क्योंकि आर्थिक गतिविधियां आरंभ हो गई हैं। वर्ष के शेष 10 महीनों में पेट्रोल-डीजल की खपत स्थिर रहने के अनुमान के साथ भी कुल गिरावट 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। ऐसे में 1.4 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर राजस्व तार्किक है।

17 मई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोविड19 से जुड़े सभी पैकेज का अलग अलग ब्योरा दिया, जिसकी घोषणा की गई है। इसमें उन्होंने केंद्र के स्वास्थ्य क्षेत्र का 15,000 करोड़ रुपये का पैकेज और भारतीय रिजर्व बैंक का 8 लाख करोड़ रुपये का समर्थन भी शामिल किया। उन्होंने यह भी कहा कि 22 मार्च के बाद से की गई कर छूट की घोषणाओं से खजाने पर 7,800 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। 26 मार्च को की गई 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के तहत वित्त मंत्री ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त खाद्यान्न वितरण करने, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और बेसहारा को एकमुश्त सहायता, उज्जवला लाभार्थियों को 3 महीने तक मुफ्त रसोई गैस सिलिंडर देने का जिक्र किया। इन सभी पर 92,000 करोड़ रुपये लागत आने की उम्मीद है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि सरकार ने 2008 के संकट के बाद के कदमों से सबक सीखा है और वह पुरानी गलतियां दोहराना नहीं चाहती। माना जाता है 2008 के वित्तीय संकट के बाद तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने प्रोत्साहन उपायों की वापसी में देरी की जिसके कारण राजकोषीय घाटा बढ़ा, मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई और चालू खाते का घाटा अस्थायी स्तर पर बढ़ गया। इसके कारण सन 2013 में देश मुद्रा संकट का शिकार होने के करीब पहुंच गया था। स्पष्ट है कि सरकार व्यय बढ़ाने के लिए वित्तीय स्थिरता को जोखिम में नहीं डालना चाहती।

 

कितना प्रभावी होगा यह आर्थिक पैकेज?

सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आर्थिक पैकेज से अर्थव्यवस्था में सुधार को बल मिलेगा, लेकिन शीर्ष भारतीय कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों (सीईओ) ने क्षेत्र विशेष के लिए कदम न उठाए जाने के कारण निराशा जताई है। मुख्य कार्याधिकारियों ने कहा कि सरकार को उन उपायों की घोषणा करनी चाहिए जिनसे मांग को रफ्तार मिल सके। गरीबों को प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण और मध्य वर्ग को कर लाभ देकर मांग पैदा की जा सकती है। देश भर के 25 प्रमुख कारोबारियों के बीच 17 मई को किए गए एक सर्वेक्षण में 64 प्रतिशत प्रतिभागियों ने कहा कि पिछले पांच दिनों के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित विशेष आर्थिक पैकेज से कमजोर हो रही अर्थव्यवस्था को दम मिलेगा। लेकिन 88 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि वे क्षेत्र विशेष के लिए पैकेज की उम्मीद कर रहे थे।

विमानन, आतिथ्य सेवा, यात्रा एवं पर्यटन और वाहन जैसे कुछ क्षेत्रों में लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही नकदी प्रवाह शून्य रहा है। इन क्षेत्रों की कई कंपनियां लोगों की छंटनी कर रही हैं अथवा कर्मचारियों के वेतन में बड़ी कटौती की घोषणा की है।आरपीजी एंटरप्राइजेज के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने कहा, ‘निस्संदेह इस पैकेज में आपूर्ति पक्ष को संतुलित करने के लिहाज से काफी विवेकपूर्ण और संवेदनशील उपाय किए गए हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि मांग कैसे सृजित होगी।’ सर्वेक्षण में शामिल 44 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि इस पैकेज से कारोबारी सुगमता में सुधार होगा लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू करना सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।पिछले तीन महीनों से तमाम कर्मचारियों और श्रमिकों को वेतन नहीं मिले हैं। उन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए नकदी की दरकार है। सर्वेक्षण में शामिल 72 प्रतिशत सीईओ ने कहा कि सरकार इस संकट से अच्छी तरह निपट रही है और इतने ही प्रतिभागियों ने कहा कि आवश्यक सेवा अधिनियम में बदलाव के कारण किसानों की आय में सुधार होगा। इस संशोधन के कारण मंडी अथवा बिचौलिये की बिना किसी दखल के बाजारों तक किसानों की पहुंच सुनिश्चित होगी। इससे उन्हें अपनी उपज के लिए अच्छी कीमत मिल सकेगी।

इस सर्वेक्षण से इतना तो स्पष्ट है कि एक बहुत बड़ा वर्ग इससे असंतुष्ट है क्युकि मांग बढ़ने के उपाय बहुत थोड़े और अपर्याप्त हैं। इस असाधारण संकट ने आपूर्ति शृंखलाओं को पूरी तरह धराशायी कर दिया है, लॉकडाउन ने समूची अर्थव्यवस्था को थमने पर मजबूर कर दिया है। इस संकट का असर अभूतपूर्व है- सीएमआईई के अनुसार आज 27 प्रतिशत बेरोजगारी है, यानी 12.2 करोड़ लोगों के पास कोई काम नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा घोषित विशेष आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में अपने लिए कोई विशेष प्रावधान न होने से आतिथ्य सेवा एवं रेस्तरां क्षेत्र की कंपनियां नाखुश हैं। भारतीय पर्यटन, यात्रा एवं आतिथ्य सेवा क्षेत्र देश के जीडीपी में करीब 10प्रतिशत का योगदान करता है।

व्यय सचिव टीवी सोमनाथन ने एक साक्षात्कार में कहा कि यह सिर्फ कोविड पैकेज नहीं था। यह नए व आत्मनिर्भर भारत का पैकेज है। मुझे लगता है कि गरीबों व विस्थापितों को नकदी से ज्यादा भोजन की जरूरत थी और केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा भोजन मुहैया कराया गया है। हाल की घोषणाओं के बहुत पहले राज्य सरकारों ने विस्थापितों को खाद्यान्न दिया है। कोई जरूरी नहीं है कि नकदी की तत्काल जरूरत हो, जब कोई घर पहुंचने की कवायद कर रहा है। दूसरा बिंदु यह है कि आप कितनी नकदी देंगे, जो पर्याप्त होगी? जैसा कि वित्त मंत्री ने बार बार कहा है कि असली आंकड़े बाद में ही आ सकेंगे। साथ ही यह भी समस्या है कि लोगों का जो समूह जा रहा है उनकी पहचान व बैंक खाते नहीं पता है। नकद अंतरण हकीकत की तुलना में कागजों में आसान है, जब आप विस्थापितों को नकद अंतरण की बात कर रहे हैं।  ऐसे में हम मुफ्त खाद्यान्न को लेकर बहुत उदार रहे हैं। हमने राज्यों से कहा है कि वह अनाज लें और विस्थापितों को खिलाएं। हमने राज्यों को न सिर्फ खाने के लिए पैसे दिए हैं, बल्कि कैंप बनाने के लिए भी धन दिया गया है। व्यय सचिव का बयान हास्यास्पद है। प्रश्न मांग बढ़ाने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन देने का है, सिर्फ आजीविका के लिए राशन और सहायता का नहीं।

बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उद्योगपतियों से कहा कि कोरोनावायरस महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी से बाहर निकलने के लिए घरेलू उद्योगों को तत्काल परिचालन शुरू करने और निवेश बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि भारत के उद्योग जगत ने कहा कि अर्थव्यवस्था में मांग का स्तर कम है और यह बड़ी चुनौती है, जिसका सामाना बड़े कारोबारी भी कर रहे हैं, ऐसे में ऐसा करना कहने की तुलना में मुश्किल है। सीआईआई के सदस्यों ने अर्थव्यवस्था में मांग की कमी का हवाला दिया और गरीब लोगों के हाथ में सीधे नकदी दिए जाने की वकालत की। मंत्री ने कहा कि आगे के नीतिगत सुधार में पर्यटन, ऑटोमोटिव और उड्डयन क्षेत्र को शामिल किया जाएगा। सीआईआई ने नौकरियां बचाने, मांग बढ़ाने, अप्रत्याशित चुनौतियों के बीच बड़े उद्यमों का बने रहना सुनिश्चित करने के लिए वित्तमंत्री से आग्रह किया।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक समाचार पत्र के साथ बातचीत में कहा कि  सरकार उद्योगों के साथ है और संकट की इस घड़ी में उनके नुकसान को कम से कम करने का हरसंभव प्रयास करेगी। पिछले हफ्ते पांच किस्तों में प्रोत्साहन की घोषणा के बाद क्या छठे चरण के प्रोत्साहन को लेकर भी सरकार की कोई योजना है, पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा, ‘स्थिति के हिसाब से निर्णय किया जाएगा। हमने अपने दरवाजे बंद नहीं किए हैं।’ सुधारों को लेकर की गई घोषणाएं लंबे समय में कारगर होंगी और इसके नतीजे काफी बेहतर होंगे। यह पूछे जाने पर कि क्या यह 1991 के सुधारों की तरह होगा? सीतारमण ने कहा, ‘इस बार संकट कुछ ज्यादा गहरा है।’ वित्त मंत्री ने कहा, ‘मैं अपना पैसा नहीं लगा रही हूं। यह जनता का पैसा है। हमारे ऊपर काफी जिम्मेदारी है और मैं सतर्कता के साथ काम कर रही हूं। वह समय आएगा जब मैं संसद में खड़ी होकर कहूंगी कि मैंने यह किया है।’

गहरी मंदी की चपेट में अर्थव्यवस्था

22 मई को अचानक घोषित प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शशिकांत दास ने पहली बार यह माना कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर इस वित्तीय वर्ष में नकारात्मक हो सकती है। अर्थव्यवस्था में पर्याप्त नकदी होने के बावजूद रिजर्व बैंक ने पुनः रेपो और रिवर्स रेपो दरों में कमी की जिससे कि ऋण लेना और सस्ता हो और बैंक लोगों को, उद्यमियों को ऋण बांटे भी। लेकिन फिर भी अर्थव्यवस्था में ऋण की मांग कम है क्योंकि मांग ना बढ़ने से उद्यमी आगे नहीं आ रहे। आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरह से बाधित होने के कारण खाद्य महंगाई में वृद्धि पर रिजर्व बैंक ने चिंता भी जताई है। मानसून की बेहतर संभावनाओं से कृषि क्षेत्र से आशा है इसीलिए  गवर्नर साहब ने  अगली तिमाही में  कीमतों में कमी की संभावना जताई  है। परंतु जब तक आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत नहीं किया जाता है तब तक कीमतों  पर रोक मुश्किल होगी। अगले महीनों में यदि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दामों में वृद्धि होती है तो यह भी इस स्पीति के मोर्चे पर एक समस्या होगी, ऐसे में जबकि अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त नकदी का संचरण हो रहा हो और आयात और औद्योगिक उत्पादन धीमा हो गया हो।

आर्थिक पैकेज को लेकर अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसका तुरंत कोई असर नहीं दिखेगा लेकिन आने वाले दो-तीन वर्ष में इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव दिख सकता है। उनका कहना है कि आर्थिक गतिविधियों को गति पकड़ने में समय लगेगा और यही वजह है कि चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद का  पांच प्रतिशत तक गिर सकता है। हां, यदि सरकार प्रोत्साहन पैकेज नहीं देती तो यह गिरावट कहीं बड़ी होती। इस पैकेज के बाद भी अमेरिका स्थित निवेश प्रबंधन कंपनी बर्नस्टीन ने वित्त वर्ष 2020 21 में भारत की अर्थव्यवस्था में 7 प्रतिशत का संकुचन आने का अनुमान जताया है, वहीं गोल्डमैन सैक्स ने यह 5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। ऐसे अनुमान तब भी जताए जा रहे हैं जबकि सरकार ने पिछले हफ्ते पांच दिनों तक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है। नोमुरा ने भी प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के बावजूद वित्त वर्ष 2021 में पांच प्रतिशत संकुचन आने के अपने अनुमान को बरकरार रखा है। बोफा सिक्योरिटीज ने वित्त वर्ष 2021 में 0.1 प्रतिशत और पहली तिमाही में 12 प्रतिशत संकुचन का अनुमान जताया है। केयर रेटिंग्स ने अर्थव्यवस्था के 1.1 प्रतिशत से 1.2 प्रतिशत की दर से बढऩे का अनुमान जताया था जिसे घटाकर पांच प्रतिशत गिरावट का कर दिया है । इक्रा अर्थव्यवस्था में 1 से 2 प्रतिशत के संकुचन के अपने अनुमान पर टिकी हुई है।

बर्नस्टीन के विश्लेषकों का कहना है कि घोषित राहत पैकेज एक चूका हुआ अवसर है। गोल्डमैन सैक्स के एशिया प्रशांत के प्रमुख अर्थशास्त्री एंड्र्यू टिल्टन ने प्राची मिश्रा के साथ मिलकर लिखे लेख में कहा है, ‘कई क्षेत्रों के लिए पिछले कुछ दिनों में तमाम ढांचागत सुधारों की घोषणा की गई है। यह सभी सुधार मध्यावधि हिसाब से हैं और ऐसे में हम कोई उम्मीद नहीं करते कि वृद्धि तत्काल बहाल होने में इनसे कोई मदद मिलेगी।’ नोमुरा ने कहा कि सरकार को आने वाली तिमाहियों में और कदम उठाने पड़ेंगे, जिससे वृद्धि बहाल हो सके। इसमें मांग के क्षेत्र में प्रोत्साहन देने के साथ साथ वित्तीय क्षेत्र को समर्थन शामिल होगा। अर्थशास्त्रियों ने यह भी कहा है कि जिस प्रकार से मजदूरों का पलायन हो रहा है और बड़ी संख्या में कामगार काम धंधे वाले राज्यों से निकलकर अपने गृह राज्यों में जा रहे हैं, उससे आने वाले समय में आपूर्ति श्रृंखला गड़बड़ा सकती है और महंगाई बढ़ सकती है।

 

फिर भी अर्थव्यवस्था को गति देगा यह पैकेज!

कोरोना महामारी की वजह से देश की आर्थिक वृद्धि दर घटकर शून्य प्रतिशत से नीचे आने की आशंका है मगर केंद्र सरकार ने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च का आंकड़ा बढ़ाकर 111 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। यह अनुमान 2025 तक की पांच वर्ष की अवधि के लिए है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले सप्ताह वीडियो-कॉन्फ्रेंस के दौरान उद्योग के प्रतिनिधियों को बताया कि उनके मंत्रालय ने अगले दो वर्ष में 15 लाख करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं को अमलीजामा पहनाने की योजना बनाई है। सड़क निर्माण क्षेत्र में इतने बड़े निवेश की घोषणा का अर्थव्यवस्था को उबारने की सरकार की पहल के रूप में उम्मीद के मुताबिक स्वागत किया गया, जिसे कोविड19 और लॉकडाउन की वजह से नुकसान पहुंचा है। सड़क निर्माण रोजगार पैदा करता है और मांग सुधारने में मदद करता है। यह बुनियादी ढांचे को मजबूत करता है, शहरों के बीच सड़क संपर्क को सुधारता है और उत्पादकता एवं कारोबारी सुगमता को बढ़ाता है।

लॉकडाउन ने जहां मांग और आपूर्ति दोनों को झटका दिया है, वहीं अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि आपूर्ति शृंखला को कितनी जल्दी व्यवस्थित किया जा सकता है। सामाजिक दूरी के मानकों और प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी ने भी इसे मुश्किल बनाया है। मांग के बढ़ने पर अभी तुरंत आपूर्ति भी संभव नहीं है।ऐसे में अर्थव्यवस्था को खोलने के बाद कीमतों में इजाफा देखने को मिल सकता है। अतिरिक्त नकदी भी समस्या में इजाफा करेगी। ऐसे में अभी तुरंत और मांग के बढाने के उपाय ना करना सरकार की रणनीति हो सकती है। एक अन्य स्तर पर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार अपने पास कुछ क्षमता बचाकर रखना चाहती है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वायरस कब तक रहेगा और आर्थिक नुकसान कितना व्यापक होगा? संभव है कि आने वाले समय में सरकार को और अधिक हस्तक्षेप करने पड़ें। सरकार ने फिलहाल घाटे का मुद्रीकरण न करने का निर्णय किया है, जो अच्छा कदम है। यदि सरकार ऐसा करना शुरू कर दे तो इसे रोक पाना मुश्किल होगा और तब कहीं अधिक बड़ी वृहद आर्थिक दिक्कत खड़ी हो जाएगी।

विदेशी कंपनियां चीन की व्यापक आपूर्ति शृंखला क्षमताओं, श्रम उत्पादकता और विश्व-स्तरीय ढांचे की वजह से वहां गईं।  इसके अलावा उन्हें वहां पर बड़ा घरेलू बाजार भी मिल रहा है। एक महामारी इन वजहों को नहीं बदल सकती है और इस पर असरदार तरीके से काबू पाकर चीन ने अपनी छवि को और पुख्ता भी कर लिया है। चीन छोड़कर जाने वाली कंपनियां क्या भारत आने को लेकर उत्सुक हैं? इसके पुख्ता सबूत नहीं हैं। भारत विदेशियों के लिए आकर्षक नहीं है। इसके कई कारण हैं और सभी समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। बात केवल जमीन की उपलब्धता या सख्त श्रम कानूनों का मसला नहीं है। यह लालफीताशाही, फिरौती, पूर्व प्रभावी सुधार, नियमों में अस्थिरता, कर आतंकवाद, खराब श्रम उत्पादकता, बंदरगाहों पर होने वाली देरी और सॉवरिन जोखिम का मामला है। सरकार को कारोबारी जगत के समक्ष कानूनी बाधाएं दूर करने के लिए भी काफी काम करना होगा।

 

अर्थव्यवस्था को गति देने के उपाय 

  1. कृषि और उस पर आधारित उद्योगों के विकास से भी संपोषणीय विकास सुनिश्चित होता है और यह कहीं अधिक समावेशी भी है। अब भी भारत की श्रम शक्ति का आधा कृषि क्षेत्र में कार्य कर रहा है और आजीविका के लिए लगभग दो तिहाई से अधिक जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, जबकि कृषि का राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान लगभग 16 प्रतिशत रह गया है। इस असमान विकास का परिणाम है बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर लोगों का पलायन। ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादक रोजगार उपलब्ध नहीं है। इसका प्रमुख कारण है  आधारिक संरचना और मजबूत आपूर्ति श्रृंखला ना होना। आपूर्ति श्रृंखला की मजबूती और दक्षता के बिना आज हम कृषि व ग्रामीण क्षेत्र के उपयुक्त विकास की कल्पना नहीं कर सकते हैं। कृषि को किसानों के लिए लाभदायक बनाना होगा भूमि की उत्पादकता बढ़ाने वाली नई प्रविधिओं के साथ ही कृषि की सहायक गतिविधियों के विकास के लिए महत्वपूर्ण पहल और उसे एक सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला से जोड़ना इस दिशा में महत्वपूर्ण होगा।
  2. कृषि की सहायक गतिविधियों जैसे पशुपालन, भेड़ पालन, मुर्गी पालन, सूअर पालन, मधुमक्खी पालन आदि को तकनीकी सहायता और परामर्श उपलब्ध कराने के साथ ही साथ बेहतर बाजार उपलब्ध कराने के लिए उसे सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ना होगा।
  3. दूसरी एक बेहद महत्वपूर्ण पहल खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विकास है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नई तकनीकों के प्रयोग के द्वारा अपने उत्पादों की गुणवत्ता को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बना सकें, इस दिशा में सरकार को इन उद्यमों को मदद करनी होगी। भारत के संदर्भ में यह उद्योग बेरोजगारी को दूर करने, कृषि क्षेत्र में लोगों की आय वृद्धि करने, क्षेत्रीय असमानताएं कम करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में उत्पादित उत्पादों के अनुरूप प्रसंस्करण उद्योगों का विकास उस पूरे क्षेत्र की तकदीर बदल सकता है।
  4. सरकार ने लघु व मध्यम उद्योगों को जो बैंकों के द्वारा तीन लाख करोड़ रूपए का पैकेज दिया है वह सराहनीय है।लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि उनके द्वारा उत्पादित की गई वस्तुओं के लिए बाजार नहीं है। यदि मांग नहीं होगी तो उद्यमी उत्पादन नहीं करेंगे। यदि आयातित माल सस्ते होंगे या बड़े उद्योगों द्वारा बाजार में आ रहे वैसे ही माल सस्ते होंगे तो छोटे उद्योगों उनके सामने नहीं टिक पाएंगे। ऐसे में सरकार को इन्हें संरक्षण देना होगा। तभी यह उद्यम बाजार में टिक पाएंगे और दिए गए ऋणों का उचित उपयोग कर पायेंगे।
  5. आयातित वस्तुओं पर कर भी बढ़ाना होगा, यह एक प्रकार  से जनता पर रोजगार कर माना जा सकता है ,क्योंकि इससे देश के अंदर वस्तु की कीमत तो बढ़ेगी लेकिन रोजगार बढ़ेगा। छोटे उद्योगों को बाजार में टिके रहने के लिए यह जरूरी होगा।
  6. एक महत्वपूर्ण बात है छोटे उद्योगों को बेहतर उत्पादन तकनीकी के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना जिससे वे अपने खर्च को कम कर सके और उत्पादों की गुणवत्ता को बेहतर कर सकें। वैसे तो छोटे उद्योग बड़े उद्योगों को बड़े पैमाने पर अपने माल की सप्लाई करते हैं परंतु इस बात की बड़ी आवश्यकता है कि छोटे उद्योगों को सीधे संबंधित बड़े उद्योगों से जोड़ा जाए और इन्हें पूर्ति श्रृंखला से भी सीधे जोड़ा जाए, जिससे इनके उत्पाद आसानी से बाजार में आ पाएं।
  7. नोट बंदी को असफल करने में बैंक कर्मचारियों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान था जिनकी मिलीभगत से काला धन बैंकों में कानूनी ढंग से जमा हो गया। यदि लघु व मध्यम उद्योगों के लिए दिए गए तीन लाख करोड़ रूपए के पैकेज का जमीनी स्तर पर सही क्रियान्वयन नहीं हुआ तो फिर उसे एनपीए में तब्दील होना तय है और इससे पहले ही बदहाली से गुजर रहे बैकों के लिए और मुश्किल होगी।
  8. सुधार के मोर्चे पर सरकार ने अपने इरादे जताकर अच्छा किया लेकिन उसे आने वाले दिनों में अपनी बातों पर भी खरा उतरना होगा। सरकार को कारोबारी जगत के समक्ष कानूनी बाधाएं दूर करने के लिए भी काफी काम करना होगा। कोरना के बाद इन्स्पेक्टर राज और बढ़ गया है जोकि उद्यमियों की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए कानूनों को सरल और व्यावहरिक बनाने की दिशा में पहल एक अच्छा प्रयास होगा।
  9. अर्थव्यवस्था में इस समय मांग की कमी है। होना यह चाहिए था कि सरकार सभी नियोक्ताओं को कर्मचारियों को दिए गए वेतन का एक निश्चित प्रतिशत देने का आश्वासन देती और यह सुनिश्चित करती की सभी कामगारों को पैसा मिल रहा है। लेकिन भारत जैसे देश में यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि अधिकतर मजदूरों का कोई भी रिकॉर्ड नियोक्ताओं के पास नहीं है। विशेष रुप से जो मजदूर असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। लेकिन सरकार संगठित क्षेत्र में कार्यरत लोगों के भी रोजगार और वेतन को सुरक्षित रखने के ठोस उपाय कर पाती तो उनकी मांग बनी रहती और इससे असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे कर्मचारियों को भी मदद मिलती।

 

राजकोषीय उपाय बनाम मौद्रिक उपाय

            सरकार अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए मुख्यतः दो प्रकार की नीतियों का सहारा लेती है जिसे हम राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति कहते हैं यह दोनों ऐसे हथियार हैं जिनके उचित समन्वय से सरकार अर्थव्यवस्था में अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकती है लेकिन यह दोनों हथियार अर्थव्यवस्था में कितने प्रभावी होते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि अर्थव्यवस्था किस अवस्था में है ।

यदि अर्थव्यवस्था में  मुद्रा और मुद्रावत मुद्रा का प्रयोग अधिक है अर्थात अर्थव्यवस्था का मुद्रीकरण पर्याप्त मात्रा में हुआ है तो मौद्रिक नीतियां ज्यादा कारगर हो सकती हैं ।और यदि सरकार अपने व्यय और कर के माध्यम से अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को प्रभावित कर सकने की स्थिति में है तो राजकोषीय नीति की भी प्रभाविता बढ़ जाती है। वस्तुतः मौद्रिक नीति किसी भी देश का केंद्रीय बैंक लागू करता है जिसमें कि वह मुद्रा पूर्ति को नियंत्रित करके समष्टि आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने की कोशिश करता है। अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति में सामान्यतया केंद्रीय बैंक सस्ती मुद्रा नीति का पालन करता है, अर्थात ब्याज दरों में कमी, खुले बाजार प्रचालन, सीआरआर व एसएलआर में कमी जैसे मौद्रिक यंत्रों की सहायता से अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ाने का उपाय करता है। उद्देश्य होता है कि कम ब्याज दर यानी कम लागत पर पर्याप्त मात्रा में पैसा पूंजी निवेश के लिए कंपनियों को उपलब्ध हो सके।

लेकिन एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है प्रत्याशा । यदि उत्पादक यह सोचता है कि बाजार में अभी वस्तु की मांग नहीं है और आगे भी नहीं होगी तो वह उस वस्तु का उत्पादन सस्ती ब्याज दर पर भी उधार लेकर के निवेश नहीं करेगा। क्योंकि उत्पाद ना बिक सकने की स्थिति में उसे पर्याप्त लाभ नहीं होगा। अतः निवेश तभी बढ़ेगा जबकि ब्याज दर और लाभ की दर में एक अच्छा अंतर हो। जैसे यदि ब्याज दर 10 प्रतिशत है और लाभ की दर 20 प्रतिशत है तब तो निवेश करने में फायदा है लेकिन यदि ब्याज दर 5प्रतिशत हो गई और लाभ की दर 8 प्रतिशत हो गई तो निवेश करने में उद्यमी को अधिक फायदा नहीं है। तो पूंजी सिर्फ सस्ती होना और उपलब्ध होना महत्वपूर्ण नहीं है सबसे महत्वपूर्ण है बाजार में उत्पाद की मांग का होना, उसका बिकना । इसी प्रकार यदि उपभोक्ताओं की आय कम हो रही है या रोजगार छिन गए हैं, भविष्य में आय को लेकर अनिश्चितता है तो बहुत संभालकर व्यय करेगा और ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में मांग नहीं बढ़ सकेगी। तो यदि बाजार में मांग नहीं होती है उत्पादों की बिक्री की निश्चितता नहीं पैदा होती है और उत्पादकों की लाभ में आशंका है, संशय है तो ब्याज दर में कमी का भी कोई फायदा नहीं होता है। इसलिए सामान्यतया मंदी की स्थिति में मौद्रिक नीति बहुत प्रभावी नहीं रह जाती है।

जब बाजार में पर्याप्त तरलता हो, ब्याज दरें काफी नीची हों और तब भी अनिश्चितता के कारण और उत्पत्कों तथा उपभोक्ताओं की विपरीत प्रत्याशाओं के कारण नया निवेश नहीं हो रहा हो तो राज्य को अपने राजकोषीय यंत्रों जैसे सर्वजनिक व्यय, सर्वजनिक करारोपण, सर्वजनिक ऋण के माध्यम से सक्रिय हस्तक्षेप करना होता है। एक यंत्र के रूप में राज्य अपनी राजकोषीय नीति, इन तीन यंत्रों के, माध्यम से संसाधनों के विभिन्न क्षेत्रों और प्रयोगों में आवंटन को सुनिश्चित करती है, इन्हीं के माध्यम से वितरणात्मक विसंगतियों को दूर कर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करती है और इन्हीं के माध्यम से अर्थव्यवस्था को स्फीति और मंदी की स्थितियों से बचाकर आर्थिक स्थिरीकरण का प्रयास करती है।

जबकि अर्थव्यवस्था में मांग की कमी हो, लोग बेरोजगार हो गए हैं, वह भी बहुत बड़ी संख्या में, और अधिकांश लोगों की आय का स्त्रोत सूख गया हो तथा एक बड़ा तबका आय में कमी से जूझ रहा हो, वैसे में मांग बढ़ाने के लिए लोगों को तुरंत रोजगार प्रदान करना और पैसा उपलब्ध कराना बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसी स्थिति में तात्कालिक रूप से मांग बढ़ाने के लिए पहला उपाय है कि सरकार निम्न आय वर्ग के लिए नगदी सहायता दे। दूसरा वह गैर कुशल श्रमिकों के लिए मजदूरी रोजगार की व्यवस्था करे, तीसरा छोटे मध्यम और बड़े उद्यमों में भी रोजगार और उत्पादन बढ़ें। तीसरे में आशंका यह है कि बिना मांग की निश्चितता के कारण उद्यमी उत्पादन नहीं करेगा। इसलिए वहां से रोजगार और मांग बढ़ने की संभावना कम है। पहले और दूसरे उपाय मांग बढ़ाने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यदि सरकार लोगों को प्रत्यक्ष नकदी का हस्तांतरण करती है तो इसे तुरंत ही अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी और इससे रोजगार, उत्पादन, राष्ट्रीय आय में गुणक प्रभाव के माध्यम से तेज वृद्धि देखी जा सकती है।  सरकार इस समय तीनों ही उपायों का संयुक्त रूप से सहारा ले रही है।

 

व्यय के लिए पैसों की व्यवस्था और कीमतें बढ़ने का संकट!

जब सरकार के राजस्व की हालत खराब हो वैसे स्थिति में बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष नगदी का लोगों के पास हस्तांतरण काफी कठिन है। सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में और आधारिक संरचना में बड़े पैमाने पर निवेश करके व्यापक रोजगार का प्रत्यक्ष रूप से सृजन कर सकती है जो कि आगे मांग को मजबूती प्रदान करेगा और तब अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा दिए गए तरलता उपायों का सही ढंग से उद्यमी लाभ ले पाने में सफल होंगे। लेकिन आपूर्ति श्रृखला के बाधित रहने पर इससे कीमतों के बढ़ने का भी खतरा है।

सरकार के पास व्यय बढ़ाने के लिए संसाधनों के गतिशीलन की समस्या है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में उत्पादन में लगभग 45 से 50 प्रतिशत की गिरावट आने वाली है और पूरे वित्तीय वर्ष में गिरावट का अनुमान लगभग 5 प्रतिशत का है। स्पष्ट है कि इससे सरकार के  राजस्व में भारी कमी आने वाली है जबकि सरकार के व्यय में 2 लाख करोड रुपए से अधिक की वृद्धि हो चुकी है। ऐसे में सरकार के हाथ बेहद तंग हैं। व्यय बढ़ाने की सरकार के पास दो और उपाय हैं कि वह बाजार से या आरबीआई से उधार ले और घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाएं और नए नोट सृजित करे। यदि सरकार बाजार से पैसे की उगाही करती है या रिजर्व बैंक से उधार लेती है तो इससे बाजार में निजी क्षेत्र के लिए तरलता कम हो जाएगी और ब्याज दर बढ़ने की संभावना होगी। निजी क्षेत्र द्वारा निवेश न होने और उत्पादन न बढ़ा सकने की स्थिति में सरकार द्वारा किए गए तत्कालिक व्यय से कीमतों के बढ़ने का भी खतरा होगा। यदि सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का सहारा लेती है और नए नोट सृजित करती है तो इससे मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ने का खतरा और बढ़ जाता है। क्योंकि इस प्रक्रिया के तहत बाजार में तुरंत ही लोगों के हाथ में पैसा आ जाएगा जबकि आपूर्ति श्रृंखला के बाधित होने के कारण और निजी क्षेत्र द्वारा नए निवेश नहीं होने के कारण तुरंत उत्पादन बढ़ा पाना संभव नहीं होगा। इसलिए सरकार अंतिम विकल्प के रूप में ही इन  उपायों का सहारा लेना चाहती है जिससे कि उसका राजकोषीय घाटा थोड़ा सा नियंत्रित रहे और अर्थव्यवस्था में कीमतों की तेजी से बढ़ने का खतरा पैदा ना हो।

वस्तुतः कीमतों का बढ़ना भी एक छुपा हुआ कर है जो कि सबसे ज्यादा प्रभाव गरीबों पर या कम आय वर्ग लोगों पर ही डालता है। ऐसी स्थिति में बिना आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत किए और निवेश और उत्पादन के, अर्थव्यवस्था में इन उपायों से सरकारी व्यय में वृद्धि स्फीतिकारी प्रवृत्तियों को बल दे सकती है और इसी से सरकार डर रही है।

 

मांग को बढ़ाना ही होगा

इस समय मांग की कमी के मुख्यतः चार कारण हम उल्लिखित कर सकते हैं: पहला रोजगार समाप्त होने से आई आय में गिरावट, दूसरा वेतन में हुई कमी, तीसरा लोगों में कोरोना के कारण पैदा हुई असुरक्षा की भावना के चलते बचत पर जोर और चौथा भविष्य के प्रति लोगों की निराशाजनक प्रत्याशाएं।रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी माना कि 2020 21 में वृद्धि दर ऋणात्मक रह सकती है।कोरोना के कारण औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ निवेश मांग और उपभोग मांग में भी जबरदस्त कमी हुई है।

मांग बढ़ाने के किसी ठोस प्रत्यक्ष उपाय के बगैर अर्थव्यवस्था में उत्साह नहीं आएगा, अर्थव्यवस्था में विश्वास नहीं पैदा होगा। अर्थव्यवस्था के विकास के लिए, तेज समृद्धि के लिए उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों में विश्वास पैदा होना  या उनकी प्रत्यासाओं का सकारात्मक होना बहुत आवश्यक है। वरना भविष्य की अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए  डरकर उपभोक्ता खर्च नहीं करेंगे और उत्पादक निवेश नहीं करेंगे। व्यवसायों को चलाने के लिए, जारी रखने के लिए उत्साह जरूरी है,  जो राजकोषीय प्रोत्साहनओं के बिना संभव नहीं है। मांग में सबसे बड़ी भूमिका मध्यम आय वर्ग की है जो कि लगभग 50% टिकाऊ और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं का खपत करता है ऐसे में उनके लिए आयकर के दरों में कटौती या प्रत्यक्ष प्रोत्साहन के द्वारा उनके व्यय योग्य आय में वृद्धि आवश्यक है। इसी प्रकार लघु व मध्यम उद्योगों को भी कर राहतों के द्वारा उत्साह बढ़ाना ज्यादा उचित था।

वस्तुतः सरकार का जो पूरा बीस इक्कीस लाख करोड़ का पैकेज है वह मध्यम से दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था में एक परिवर्तन ला सकता है। परंतु अल्पकाल में इस पूरे पैकेज का एक  बहुत थोड़ा हिस्सा ही कारगर होगा। और जैसा कि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री  प्रोफ़ेसर  जे एम केन्स ने कहा था कि मंदी की स्थिति में हमें अल्पकालिक उपायों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था में मांग हो और उत्पादन की गतिविधियां बढ़ें क्योंकि दीर्घकाल में तो हम सब मर जाएंगे। इसलिए इस समय अर्थव्यवस्था को बाजार के भरोसे छोड़ना उचित नहीं होगा उचित राजकोषीय प्रोत्साहन और ईमानदार और दक्ष प्रशासन ही पुनः इसे पटरी पर ले आ सकता है और समृद्धि को तेज कर सकता है।

 

“वोकल फार लोकल” यानि आत्मनिर्भर भारत की राह!

वर्तमान में पिछले तीन दशक से चल चल रही नीतियों के संदर्भ में आज आत्मनिर्भरता के मायने बदल गए हैं। और आज ही क्यों जब भारत ने तृतीय पंचवर्षीय योजना में इसे एक लक्ष्य के रूप में स्वीकार किया था तो भी इसके मायने वह नहीं थे जो गांधीजी कहते हैं। आज की हम आत्मनिर्भरता को  विशुद्ध अर्थ इस अर्थ में देख भी नहीं सकते हैं कि अपने आवश्यकता की साड़ी वस्तुओं का उत्पादन स्वयं ही करें और घरेलु तकनीकी से ही करें। 

आज के वैश्वीकरण के युग में आत्मनिर्भरता का अर्थ बंद अर्थव्यवस्था नहीं हो सकता है। आत्मनिर्भरता का अर्थ है भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला और मजबूत बनाना तथा इसकी प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है। इसका अर्थ है घरेलू बचत, निवेश और उत्पादन पर अधिक से अधिक निर्भरता। इसका अर्थ संरक्षणवाद नहीं है और ना ही अंतर्मुखी विकास । बल्कि आयातो पर निर्भरता कम करने और निर्यातों को बढ़ाने के लिए विदेशी पूंजी को आमंत्रित  करना और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए विदेशी कंपनियों का सहयोग लेना भी इसका हिस्सा है। लोकल के लिए वोकल होने का अर्थ है देश में बने उत्पादों का अधिक से अधिक उपभोग करना जिससे मेक इन इंडिया का सफल हो। 

उल्लेखनीय है कि चीन ने भूमंडलीकरण के द्वारा विदेशी निवेश को अपने यहां बड़े पैमाने पर बढ़ाया और एक निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। लेकिन चीन के विकास का मुख्य प्रेरक तत्व आत्मनिर्भरता ही रहा। खुली अर्थव्यवस्था के साथ आत्मनिर्भरता के विकास मॉडल ने इसे अधिक विदेशी निर्भरता से बचाया। आज वैश्विक स्तर पर स्थानीयता और भूमंडलीकरण साथ साथ चलने को बाध्य हैं। इस समय विकसित देशों अमेरिका और यूरोप में भी स्थानीयता के प्रति आग्रह बढ़ रहा है। ऐसे में जबकि कोरोना के कारण विश्व व्यापार में महत्वपूर्ण गिरावट आई है संरक्षणवाद का भी खतरा मंडरा रहा है।

इसका एक अर्थ है गांधी के आत्मनिर्भर गांवों के समूह  से भी जोड़ा जा सकता है। सरकार का कृषि और उससे संबंधित संबंधित सहायक गतिविधियों और कृषि आधारित उद्योगों पर अत्यधिक ध्यान इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कम से कम अपने आधारभूत जरूरतों के लिए हम स्थानीय उत्पादों पर अपनी निर्भरता को बढ़ाएं और संकट के समय लॉकडाऊन जैसी स्थितियों में प्रसन्न होकर जीवन यापन कर पाएं। इसके लिए स्थानीय उत्पादों के प्रति आग्रह होना आवश्यक है। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार और आय में भी वृद्धि होगी।

*****************

Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Tumblr Email
admin

Related Posts

भारतीय भाषाओं की एकात्मता और पं. दीनदयाल उपाध्याय

April 8, 2022

घटता उत्पादन, बढ़ती बेरोजगारी और आत्मविश्वास से भरी सरकार

April 8, 2022

जान के साथ जहान भी संकट में!

April 8, 2022

योगी सरकार के विकास के दावे में कितना है दम!

April 8, 2022
Add A Comment

Leave A Reply Cancel Reply

Categories
  • Blog
  • Events
  • Research
  • SRF
Recent Post
  • भारतीय भाषाओं की एकात्मता और पं. दीनदयाल उपाध्याय
  • घटता उत्पादन, बढ़ती बेरोजगारी और आत्मविश्वास से भरी सरकार
  • जान के साथ जहान भी संकट में!
  • योगी सरकार के विकास के दावे में कितना है दम!
  • अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए सरकार के दूरगामी और साहसिक कदम!
  • कितना गंभीर है यह उर्जा संकट!
  • महामारी और महामंदी के बीच आत्मनिर्भर भारत का राग !
  • अर्थव्यवस्था पर पेट्रोल डीजल की बढती कीमतों की मार!
  • जरुरी कृषि सुधारों के विरोध में किसान !
  • आत्मनिर्भर भारतः चुनौतियां एवं समाधान
  • Winners don’t do different things they do things differently
  • Bhumidana in Ancient India: A Religious and Spiritual Perspective
  • Assessment of land ownership rights on the basis of epigraphical evidences of bhumidāna during Gurjara Pratihāra period
  • ’आवां’ के निहितार्थ – जितेन्द्र श्रीवास्तव
  • Revisiting Keshavanand: Relevance and Significance
  • नई शिक्षा नीति-2020 : भारतीय शिक्षा में नवोन्मेष का आवाहन
  • An Insight into the New Education Policy 2020 .
  • Economics of Kautilya’s Arthshastra
  • International Webinar on National Education Policy 2020: Future Road map for Education in India
  • Rendezvous with Renowned Speakers in Varied Areas of Law .
Office Address

Address : Follow us and stay updated with all the news and researches
Email : info@srfindia.org
Phone : (442) 7621 3445

Quick Links
  • Home
  • About us
  • Research
  • Gallary
  • Centers
  • Blogs
  • Events
  • Contact us


Sangyartham Research Foundation is a non-profit institution that focuses on research in humanities , law and social sciences . It came into existence in the year 2020 with the following objectives.:

Facebook Twitter YouTube
Facebook Twitter YouTube
  • Home
  • About us
  • Research
  • Gallary
  • Centers
  • Blogs
  • Events
  • Contact us
© 2022 Designed by Providing edge.

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.