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Home » Blog » आत्मनिर्भर भारतः चुनौतियां एवं समाधान
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आत्मनिर्भर भारतः चुनौतियां एवं समाधान

adminBy adminApril 8, 2022Updated:April 8, 2022No Comments26 Mins Read
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डॉ विवेक कुमार निगम
एसोसिएट प्रोफेसर (अर्थशास्त्र विभाग)
यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज, प्रयागराज
नवीन कोरोना विषाणु के कोविड-19 प्रजाति के अतिसंक्रमणसील और अतितीव्र गतिसीलन के कारण
भारतीय अर्थव्यवस्था पर न केवल प्रतिकूल प्रभाव पड़ा बल्कि कई प्रकार के दारूण दृश्य उत्पन्न हुए। संभवतः
विकास के जिस मॉडल का अनुसरण हमने किया उसके कारण यह स्थितियां उत्पन्न हुई और परिणाम यह हुआ
कि जब आर्थिक गतिविधियां रुकी तो बड़े पैमाने में लोगों का रोजगार के अवसर प्रदान करने वाले स्थानों
(महानगरों) से ग्राम क्षेत्रों की ओर बहुत बड़ी मात्रा में पलायन हुआ।
अब इस परिस्थिति में भारत सरकार ने न केवल बेरोजगार हुए लोगों अपितु लघु एवं कुटीर उद्योग
चलाने वाले मध्यम वर्गीय लोगों और बड़े उद्योगों की आवश्यकताओं को भी देखते हुए एक ऐसे आर्थिक पैकेज
को घोषित किया जोकि इन परिस्थितियों में से बाहर निकलने के साथ ही देश के आर्थिक विकास के पहिए को
चलाने में सहायक हो सके। लगभग 20 लाख करोड़ का पैकेज प्रोग्राम की घोषणा के साथ जो संदेश दिया गया
वह था कि भारत को हर हाल में आत्मनिर्भर बनाना है। आत्मनिर्भर भारत को समझने के लिए हमे
आत्मनिर्भरता से क्या तात्पर्य है, और परिस्थिति, काल व देश के अनुरूप आत्मनिर्भरता की अवधारणा कैसे
संकुचित या विस्तारित हो सकती है इस पर विचार कर लेना चाहिए।
सामान्य तौर पर संचार माध्यमों व सोशल मीडिया में आत्मनिर्भरता की जड़ (Rigid) अवधारणा की
चर्चा चल रही हैं जिसमें थोड़ा सा भी लचीलापन नहीं है। संभवतः आत्मनिर्भरता कि यह अवधारणा 100 साल
या उससे पहले विश्व में चर्चा का विषय हुआ करती थी।
साधनों, संचार माध्यमों, व सूचनाओं की उपलब्धता के साथ-साथ व्यक्ति और साधन की गतिशीलता
बढ़ने के परिणामस्वरूप विश्व के सभी देशों के बीच संपर्क बढ़ा। वस्तु, सेवा, व उत्पादन के साधन, इन सब की
गतिशीलता बढ़ी। पिछले 30 वर्षों से विश्व में चल रही चर्चा कि हम वैश्वीकरण के दौर में हैं, जहां राष्ट्रीय
सीमाओं का कोई अर्थ नहीं रह गया, वह भी एक अतिव्यंजना है। ‘सब कुछ अपने ही देश में उत्पादन कर लेंगे’
इस प्रकार की आत्मनिर्भरता की जो परिभाषा है, वह भी एक अतिव्यंजना है। इस प्रकार आत्मनिर्भरता को
उसके कई आयामों में बाँट कर देखना और फिर आत्मनिर्भरता की दृष्टि से उत्पादन एवं वितरण की बनी
श्रृंखला पर विचार करना महत्वपूर्ण होगा।
स्वतंत्रता के समय भारत खाद्यान्न की दृष्टि से विदेशों पर निर्भर था, परंतु आज खाद्यान्न की दृष्टि से न
केवल भारत आत्मनिर्भर है बल्कि अन्य देशों को खाद्यान्न निर्यात करता है तथा खाद्यान्न सहायता के रूप में भी
देता है। आत्मनिर्भरता का एक आयाम सुरक्षा की दृष्टि से हो सकता है जिसकी एक लंबी श्रृंखला बनेगी। हम
अपने देश की भौगोलिक एवं नागरिक सुरक्षा के लिए यदि आत्मनिर्भर हैं तो इसका अर्थ हुआ कि हमारे पास
अपनी सीमाओं की सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त संसाधन है। इसके लिए हमे आधुनिक हथियार व कुशल
प्रशिक्षित सैन्य बल चाहिए। इतना होने से हम अपनी सुरक्षा करने में सक्षम होने के साथ-साथ आत्मनिर्भर हो
सकते है।सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भरता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि हथियारो का हम स्वयं उत्पादन
करें। लेकिन आत्मनिर्भरता की दृष्टि से एक कदम आगे बढ़ेंगे तो इन हथियारों को हमे देश के अंदर उत्पादित
करना चाहिए।
आत्मनिर्भरता की इस श्रृंखला मे देखे तो देश के अंदर उत्पादन करने के लिए राफेल से भी हमारा
समझौता हुआ है और आने वाले समय में राफेल का उत्पादन भारत में ही होगा। पहले रूस के साथ हमारे

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समझौते थे तो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में हम कुछ प्लेनों और हेलीकॉप्टरों का निर्माण किया करते
थे। फिर हमारे वैज्ञानिकों ने उसमें संशोधन किया। रक्षा शोध और विकास संगठन ने शोध किया तो हमने तेजस
और चेतक जैसे हेलीकॉप्टर बनाए। अब अगला चरण यह है कि वह तकनीक हमारे देश में ही विकसित हो
जिसके लिए यह आवश्यक है कि अनुसंधान हमारे देश में ही हो, जो हमारे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,
भारतीय विश्वविद्यालयों व इसरो आदि मे हो। सुरक्षा एवं आत्मनिर्भरता की एक लंबी अग्रगामी श्रृंखला है
जिसमें आगे चलकर कई प्रकार की सामग्रियों की आवश्यकता होगी, और यह आवश्यक नहीं है कि हर सामग्री
हमारे देश में उपलब्ध हो। सौभाग्य से हमें अनेक दुर्लभ खनिज भी उपलब्ध है जिनकी जरूरतें इस प्रकार के
उत्पादन में होती है। लेकिन इसके बावजूद भी यह आवश्यक नहीं है की हम सभी प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन
स्वयं करे। हमें कहीं ना कहीं दूसरे देशों की मदद लेनी पड़ ही सकती है तो इस स्थिति को हम यह नहीं कहेंगे कि
हम दूसरों पर निर्भर हैं। यह भी आत्मनिर्भरता का ही एक आयाम है।
इसी प्रकार से यदि हम किसी अन्य क्षेत्र, जैसे उपभोक्ता वस्तुओं की बात करें तो आत्मनिर्भर होने का
एक अर्थ है कि हमारे देश के लोगों को जो भी उपभोक्ता वस्तुएं चाहिए वह प्राप्त हो रही हो। अगर इन
उपभोक्ता वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए हम पर्याप्त विदेशी मुद्रा का अर्जन कर लेते हैं तथा इससे हमारे भुगतान
संतुलन पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ता, तो हम कहेंगे कि हम आत्मनिर्भर हैं।
यदि ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता देखे तो अभी हम विदेशों पर बहुत निर्भर है। खाड़ी देशों ने 70 के
दशक में कच्चे तेल की कीमत अचानक बहुत बढ़ा दिया अर्थात जो कच्चे तेल की कीमत 1972 ईस्वी में थी वह
1979-80 ईस्वी में 14 गुना बढ़ चुकी थी। हमने इससे सबक लेकर देश के अंदर पेट्रोल की खोज शुरू की।
परिणामस्वरूप मुंबई के पास समुद्र में एवं असम में तथा पूर्वी तट पर कई जगह पेट्रोल मिला। परंतु हमारे इतने
बड़े देश की जो ऊर्जा की आवश्यकताएं हैं उसे पूरा करने के लिए हमारे देश में उत्पादित खनिज तेल पर्याप्त नहीं
है। इस स्थिति में अर्थव्यवस्था को तीव्र गति देने के लिए खनिज तेल का आयात निश्चित है, और भारत आज भी
खनिज तेलों की एक बड़ी मात्रा विदेशों से आयात करता है। भारत लगातार ऊर्जा के विकल्पों पर काम करता
रहा है। हमारे यहां कोयले का भंडार प्रचुर है। अतः विद्युत उत्पादन में इसका प्रयोग मुख्यतः होता रहा है। इसके
अतिरिक्त ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत जैसे सौर ऊर्जा वायु ऊर्जा, पवन ऊर्जा पर भी बहुत काम किया गया और
आज विद्युत उत्पादन में इनका हिस्सा लगातार बढ़ रहा है। ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने का अर्थ होगा कि हम
धीरे-धीरे विदेशों से आयात होने वाली सामग्री पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए समाप्त कर दें। ऐसा ही
शिक्षा के क्षेत्र के साथ-साथ परिवहन के क्षेत्र में भी हो सकता है।
भारत में बुलेट ट्रेन की तकनीक का अभाव है, जिसके कारण आरंभ में विदेशी सहायता की आवश्यकता
है। सभी बड़े शहरों में मेट्रो रेल के संचालन से प्रदूषण की समस्या के साथ ही साथ ट्रैफिक जाम की समस्या का
भी समाधान हुआ है। आरम्भ मे मेट्रो ट्रेनों के लिए बोगियां हमने विदेशों से आयात की और धीरे-धीरे उन्हें
भारत में विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं।वर्तमान में व्यष्टि यानी एक मनुष्य अपने खुद के जीवन का या
फिर समष्टि अर्थात पूरे समाज का आवलोकन करें तो पाएगा की आज अपने उपयोग की हर वस्तु, हर तकनीकी,
ऊर्जा के हर साधन का स्वयं उत्पादन नहीं किया जा सकता। प्रारंभ में जो स्वदेशी की संकल्पना थी वह
औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध उत्पन्न हुई थी जबकि आज वैश्विक स्थिति बदल गई है। इसलिए निश्चित रूप से
आत्मनिर्भरता की संकल्पना में भी परिवर्तन अवश्यंभावी है।
वर्तमान में भारत जैसे देश को अपने नागरिकों की उपभोग की वस्तुओं की आपूर्ति हेतु एवं अपने देश
की गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाते रहने के लिए विदेशों से आवश्यक सामग्री का आयात तथा विदेशों से
तकनीक का आयात आवश्यक है। कई परियोजनाओं को चलाने के लिए विदेशों से पूंजी भी लेने की आवश्यकता
पड़ती है क्योंकि हमारे यहां पूंजी की कमी है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विश्व के सभी देश एक दूसरे का
सहयोग करते हैं और यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो हम एक टापू की तरह की स्थिति में होंगे जो की अपनी सभी

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आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं नहीं कर पाएगा। इस प्रकार यह सोचना कि दुनिया से कट करके भारत चलेगा,
ऐसा कतई नहीं है।
इसमें दो राय नहीं है कि भारत को आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए अपनी अर्थनीति में अनेक परिवर्तन
करने है। परंतु परिवर्तन अभी नहीं हो पाए हैं इसलिए विदेशी (चीनी) वस्तुओं का बहिष्कार करना देश के लिए
घातक होगा, क्योंकि हमारे बहुत सारे उद्योगों के लिए कच्चा माल विदेशों (चीन) से ही आता है। सर्वप्रथम हमें
उन सभी वस्तुओं का स्वयं उत्पादन करना होगा जिनकी निर्भरता विदेशों पर है और तब ही हम विदेशों पर
निर्भरता कम करने का प्रयास कर सकते हैं।
लोगों का यह तर्क कि विदेशी वस्तुओं का पूर्ण बहिष्कार ही आत्मनिर्भरता की अवधारणा है, उचित
नहीं है। ये लोग जाने अनजाने में इस देश के आर्थिक हितों का नुकसान कर रहे हैं। आत्मनिर्भरता एक व्यापक
अवधारणा है। संपूर्ण अर्थों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आज के समय में किसी भी देश के लिए संभव नहीं है।
अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश भी अपनी हर आवश्यकता के लिए आत्मनिर्भर नहीं है तथा जापान जैसा धनी
देश भी अपनी हर आवश्यकता की चीज का निर्माण स्वयं नहीं करता है हर प्रकार की वस्तु का उत्पादन करना
हर देश के लिए इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि हर देश के पास हर प्रकार के खनिज नहीं है, वातावरण नहीं
है।
हमें आत्मनिर्भरता को उसके व्यापक अर्थों में समझना होगा और उसकी ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ना
होगा। आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए हमे अनेक स्तरों पर प्रयास करने होंगे और वे प्रयास व्यक्तिगत
जीवन के प्रयासों से लेकर सामाजिक स्तर के प्रयास होंगे। अब आत्मनिर्भरता के मार्ग में हमारे सामने चुनौतियां
क्या है ? सबसे पहली चुनौती आत्मविश्वास की है। पिछले कुछ दिनों से बहुत सारे बुद्धिजीवी इस चिंता से
ग्रसित है कि आत्मनिर्भरता का लक्ष्य इतना बड़ा है कि हम उसको प्राप्त कर ही नहीं सकते। आत्मनिर्भरता की
ओर आगे बढ़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है आत्मविश्वास और आत्मविश्वास के साथ व्यक्ति से निर्मित इस
समाज का संकल्प। हम तो मानव दर्शन देने वाले समाज हैं।हमारे ऋषि-मुनियों ने जो चिंतन दिया जिसको
मानव दर्शन के रूप में दीनदयाल उपाध्याय जी ने व्यक्त किया था, वह चिंतन तो व्यष्टि से समष्टि का चिंतन है।
यह चिंतन कपोल कल्पना नहीं है। वह इस भारतीय समाज का सार है, मूल है।
भारतीय समाज आद्यतन है। कोई कहता है यह 6000 साल पुराना समाज है, कोई कहता है यह
12000 साल पुराना समाज है, कहीं कोई मानता है लाखों वर्ष पुराना है। हमारी अपनी गणना के अनुसार
5200 वर्षों से अधिक तो कलयुग को लगे हो गया। लेकिन जब से भी यह भारतीय समाज सृष्टि में उत्पन्न हुआ
हो उसे हम अद्यतन ही पाते हैं। व्यष्टि से समष्टि तक के मन में यह संकल्प होना चाहिए कि हम आत्मनिर्भर बन
सकते हैं। अतीत में भारत में ऐसे कई उदाहरण है जिसमें नेतृत्वकर्ता में दूर दृष्टि होती है। उसमें लोगों का
विश्वास होता है और समाज को साथ लेकर चलने का विश्वास होता है। तब वह अपने संकल्प को समाज के
सामने पूरा करता है। जब किशोरावस्था में शिवाजी ने यह संकल्प लिया होगा कि मुगल सेना को देश से उखाड़
फेकेंगे, तो जो बुद्धिजीवी रहे होंगे वह तो यही कह रहे होंगे कि यह नादान बालक इसे कुछ मालूम नहीं, इसके
पहले ही प्रयास में इसे कुचल दिया जाएगा। इसकी पूरी बाल टोली का कत्लेआम कर दिया जाएगा। लेकिन
शिवाजी ने एक गण पर अपना आधिपत्य जमाने से आरंभ करके और हिंदूपद पादशाही साम्राज्य स्थापित
किया। यह केवल शिवाजी के ही नहीं स्वामी विवेकानंद के संबंध में भी सत्य है। उन्होंने यह निश्चय किया कि वे
शिकागो सम्मेलन में जाएंगे और भारतीय संस्कृति व भारतीय जीवन दर्शन का प्रचार करेंगे और यह बताएंगे
कि भारतीय दर्शन एक श्रेष्ठ दर्शन है।
भारत का चिंतन अहंकारवादी नहीं है। इसलिए हमने कभी नहीं कहा कि हमारा जीवन दर्शन सर्वश्रेष्ठ
है। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि हमारा जीवन दर्शन श्रेष्ठ है और हम यह कहते है कि हमारी सामाजिक
परंपरा श्रेष्ठ है। हमारा समाज जीवन श्रेष्ठ है। हमारी आर्थिक प्रणाली श्रेष्ठ है। आपकी भी होगी लेकिन एक बार
हमारी प्रणाली को भी देखिए। ऐसे अनेक उदाहरण भारत में ही नहीं पूरे विश्व में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं।

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जब कोलंबस ने कहा कि “दुनिया गोल है, मै नाव से इसकी परिक्रमा करूंगा,” तो लोगों ने इसका उपहास
उड़ाया था। जेम्स वाट ने कहा कि “भाप में शक्ति है, इससे मैं इंजन बनाऊंगा” तो लोगों ने उसका उपहास
उड़ाया। चूँकि बुद्धिजीवी स्वभाव से शंकालु होते हैं। परंतु समाज का नेतृत्व समाज का दूसरा हिस्सा करता है,
जो बुद्धिजीवी भी होता है और हो सकता है कि उतना प्रबुद्ध ना हो, लेकिन जो मूलतः भावजीवी होता है,
जिसमें भावना होती है, वह समाज का नेतृत्व करता है। जिसमे यह भावना है कि-
“यह उथल पुथल उत्ताल लहर, पथ से ना डिगाने पाएगी,
पतवार चलाते जाएंगे, मंजिल आएगी आएगी।“

जिसमें यह भावना होती है-

“मनुष्य की संतान तेरी मुट्ठी में बंद तूफ़ान है।”
वह समाज का नेतृत्व करता है। आप कभी नहीं पाएंगे कि ‘एकेडमिक वेल्यू’ रखने वाले, किताबों का
ज्ञान रखने वाले ने समाज का नेतृत्व किया हो। ऐसा एक प्रयोग तो यूरोप के इतिहास में किया गया था कि
समाज चलाने के लिए, सरकार चलाने के लिए बुद्धिजीवीयों को दिया गया था। बुद्धिजीवीयों ने इसका क्या
हाल बना दिया, वह पूरा विश्व जानता है। इसलिए बुद्धिजीवी की बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।
भावजीवी क्या कह रहे हैं उसको सुनने की आवश्यकता है।
आत्मनिर्भरता के सामने जो पहली चुनौती है, वह है कि कहीं भी अगर आत्मविश्वास की कमी दिखाई दे
रही है तो वहां मनोबल जगाने की आवश्यकता है। जन-जन में आत्मविश्वास भरने की आवश्यकता है कि यह
वही भारत है जो कभी विश्व गुरु था। यह वही भारत है जिसे कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था, और सोने
की चिड़िया इसलिए कहलाया क्योंकि यह इतना समृद्ध और ज्ञानी था कि विश्व को शांति का संदेश दे रहा था।
पर जब सोने की चिड़िया था तब शांति का संदेश देने में मगन था, तो इस देश पर आक्रमण शुरू हो गए। आज
का जो भारत है यह उन्हीं पूर्वजों की वंशजों का भारत है और इस कारण इसमें विश्व गुरु बनने की क्षमता है,
सोने की चिड़िया बनने की क्षमता है। यहां के पूर्वजों में एवं वंशजों में पराक्रम की कमी नही है। फिर चाहे
सर्जिकल स्ट्राइक करनी हो या फिर बालाकोट में या गलवान घाटी में या इसके पहले की इतिहास हो।और सन
1962 की भी लड़ाई में हम सुविधाओं के अभाव में अपनी भूमि गवाँ बैठे थे। हम नीतिगत कमजोरी के कारण
भूमि गवाँ बैठे थे। हमारे सैनिकों के पराक्रम में कोई कमी नहीं थी, चाहे होशियार सिंह की कहानी हो या अन्य
परमवीर चक्र प्राप्त योद्धाओं की कहानी, पढ़ कर के देखिए।
एक आत्मनिर्भर सशक्त राष्ट्र बनने के लिए जो मूलभूत तत्व चाहिए वह भारत के समाज में विद्यमान है।
अब इन तत्वों के आधार पर आगे जो बड़ी चुनौती हमारे सामने हैं वह है विश्व स्तरीय तकनीकी की। कुछ क्षेत्रों
में हम उसके निकट पहुंचे हैं जैसे अंतरिक्ष विज्ञान। हमारे चंद्रयान का डाटा अमेरिका के उपयोग में आया।
पोखरण में हुए परमाणु शक्ति परीक्षण के डाटा को हमने विश्व के साथ साझा किया। हमारी न्यूक्लियर
टेक्नोलॉजी दुनिया की एडवांस टेक्नोलॉजी है। लेकिन फिर हम देखते हैं कि सामाजिक उपकरण बनाने हैं, तोपों के
निर्माण में या अत्याधुनिक क्षमता वाले युद्धक विमान बनाने में हमें दूसरे देशों की सहायता लेनी पड़ रही है।
आज का विश्व शीत युद्ध का विश्व नहीं है कि रूस कह दे कि हम आपको को क्रोजोनिक इंजन नहीं देंगे क्योंकि
आप तकनीक अमेरिका को दे देंगे या फिर अमेरिका कह दे कि आपको सुपर कंप्यूटर नहीं देंगे क्योंकि आपके यहां
से लीक होकर रुस जा सकती है। लेकिन दोनों ही देशों द्वारा तकनीक देने से मना किए जाने पर भारत के
युवाओं ने उसको चुनौती के तौर पर लिया। परम कंप्यूटर बनाया। हमने अपना रॉकेट सेटेलाइट का विकास
किया और आज हम दुनिया के तमाम देशों के सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़ रहे हैं। भारत आज अंतरिक्ष में मनुष्य
को यात्रा कराने की बात कर रहा हैं। इसको लेकर के निजी क्षेत्र को इसरो में आमंत्रित किया गया है और निजी
क्षेत्र के सहयोग से विश्व में धनी लोगों को उनकी इच्छा अनुसार अंतरिक्ष में यात्रा करा कर इसरो अपने शोध के
लिए संसाधन स्वयं तलाशेगा। हमारी जो मिसाइल तकनीक है वह एकेडमिक वैल्यू के लिए नहीं है। आज हम

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उसमें से आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर सकते हैं। जब हम दूसरी ओर देखते हैं तो हमने खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता
प्राप्त कर ली है।
लेकिन बहुत सी हमारी ऐसी चीजें हैं जिस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। मोबाइल हमारे देश में बन
तो रहा है लेकिन इसके पुर्जे विदेशों से बनकर आते हैं, दवाएं हमारे देश में बन रही है लेकिन इसके लिए
रसायन विदेशों से बनकर आ रहा है। इन्हीं सब कारणों से कहा जा रहा है कि हम आत्मनिर्भर नहीं हैं। लेकिन
यह निर्भरता ऐसी नहीं है कि इसका विकल्प नहीं है। यह हो सकता है कि भारत में जो चर्चाएं हुई हैं शायद
दुनिया में इतनी नहीं चल रही होंगी। लेकिन भारतवर्ष के बुद्धिजीवी में एक प्रकार की बीमारी है कि
नकारात्मक चर्चा करने में उनकी रूचि ज्यादा होती है इसलिए जब भी कोई विषय आता है तो उस पर आप
नकारात्मक लेख देखेंगे, विशेष करके जो अंग्रेजी मीडिया मे। हिंदी मीडिया और स्थानीय भाषाओं के संचार मे
यह समस्याएं नहीं है। हमारे यहां एक प्रकार का बुद्धिजीवी वर्ग है जो अपने को अभिजात्य मानता है, उनकी
नकारात्मक चर्चा करने की बहुत मजबूत प्रवृत्ति है।
यह चर्चा चल रही है कि चीन से जो तनाव बढ़ा है उसके कारण वहां से रसायन नहीं मिलेगा तो
हमारी दवा कारखाने बंद हो जाएंगे, ऑटोमोबाइल के पुर्जे आते हैं,जिससे ऑटोमोबाइल उद्योग प्रभावित होंगे।
हीरो मोटर व मारुति चीन से इन पुर्जों का बहुत बड़ा आयातक है। लेकिन ऐसा नहीं है की चीन के अलावा
किसी अन्य देश से इन कल पुर्जों का आयात नहीं हो सकता। भारत चीन से व्यापार इसलिए कर रहा है कि यह
कलपुर्जे वहां से सस्ते में आयात होते हैं, और दूसरा कारण है कि चीन हमारा पड़ोसी देश है इसलिए हम चीन से
व्यापार कर रहे थे। भारत का विचार है कि दुनिया के किसी और देश को लाभ हो इससे अच्छा है कि पड़ोसी
देश को लाभ हो। लेकिन पड़ोसी देश हमसे व्यापार करें और हमारी ही पीठ में छुरा भोंके, यह तो नहीं चलेगा।
फिर हम विकल्प ढूंढ लेंगे।
चीन से आने वाली हर सामग्री के बारे में भारत का बच्चा-बच्चा जानता है कि यह चल जाए तो चल
जाए नहीं तो इसकी कोई गारंटी नहीं है। अरब देशों ने चीन से जो सुरक्षा उपकरण आयात किया, जैसे ड्रोन वह
डिफेक्टिव निकल गए। अभी हाल ही में चीन ने इटली को जो मास्क की आपूर्ति की थी उसकी गुणवत्ता बड़ी
निम्न थी। पिछले दिनों भारत में कोरोना की जांच किट चीन से आयात की थी जिसकी गुणवत्ता उपयुक्त ना होने
के कारण डील को निरस्त किया गया। चीन से आयात का प्रमुख कारण यह है कि पूरे विश्व में चीनी वस्तुओं को
बड़ी कम कीमत पर उपलब्ध करा देता है इसलिए हम वहां से आयात करते हैं। पर विगत दिनों में उसके वस्तुओं
की गुणवत्ता ने निराश ही किया है। हम विश्व के अन्य देशों से भी वस्तुओं के कल पुर्जों का आयात कर सकते हैं।
यद्यपि इससे हमारे उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी परंतु दूसरी ओर उन कल पुर्जों की गुणवत्ता के बारे में हम
आश्वस्त भी हो सकते हैं। राष्ट्र हित के लिए हमें थोड़ा महँगी वस्तु स्वीकार करनी होंगी और मुझे लगता है कि
भारत का हर सामान्य नागरिक इसी ढंग से सोचता है।
हमे ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना है, उच्च गुणवत्ता वाली उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण करना है,
हमें सैन्य सामग्री के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना है। इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने के कई चरण हैं, पहले सामग्री
निर्माण करें और फिर धीरे-धीरे तकनीक का विकास करें। हम अपने आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को ध्यान में रखकर
चलें तो स्वाभाविक है कि आयात बढ़ेंगे। हम विश्व मे सबसे सस्ती दवाएं नियार्त करते है। चीन से रसायनो के
आयात प्रतिबन्धित होने के बाद भी हमारी दवाएं दुनिया में बहुत सस्ती ही रहेंगी। चीन में अब उत्पादन महंगा
हो रहा है क्योंकि हाल के वर्षों में यहाँ मजदूरी दरें तेजी से बढ़ी है। अब वह भारत के सापेक्ष थोड़ा ही लाभ लेने
की स्थिति मे है और यह जो लोगों के मन में आशंका है कि हमारी चीजें बहुत महंगी हो जाएंगी यह आशंका
बहुत ठोस आधार पर नहीं है।
चीनी उत्पादो का बहिष्कार के कारण हमे आयात दूसरे देशों से करने पड़ सकते हैं जिससे हमारे आयात
बिल बढ़ सकते हैं। इन आयात बिलों को हम कम कहां से कर सकते हैं तो वहां पर आता है ‘वोकल फार लोकल’।
हम विदेशी परफ्यूम इस्तेमाल कर रहे हैं। विदेशी परफ्यूम केवल हमको सुख देता है। थोड़ा परफ्यूम हमने

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विदेशी इस्तेमाल किया और कहीं भी गए हैं, स्वाभाविक है लोग तो प्रशंसा करते हैं। बहुत अच्छा कपड़ा पहना
है, आपका परफ्यूम बड़ा अच्छा लग रहा है, तो हम बड़े गर्व के साथ बोलते हैं फ्रांस से आया है। हमें इस पर
थोड़ा समझौता करना है। हम भारत का इत्र इस्तेमाल कर सकते हैं, हम भारत में बनी कंपनी के परफ्यूम का
इस्तेमाल कर सकते हैं। हो सकता है गुणवत्ता थोड़ी कम हो। हम भारत के ही बने कपड़े पहने हैं, थोड़ा कम
अच्छे दिखेंगे। अगर हम डॉक्टर हैं थोड़ा कम अच्छे दिखेंगे तो हमारी सर्जरी पर इसका असर नहीं पड़ने वाला
है। कम अच्छे दिखने पर प्रोफेसर के क्लासरूम टीचिंग पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इससे हमारे द्वारा लिखे जाने
वाले रिसर्च पेपर पर असर नहीं पड़ने वाला है। हम कोई बड़े व्यापारी या उद्योगपति हैं तो हमारे कपड़े से
हमारे व्यापार या उद्योग पर कोई असर नही पड़ता है। रतन टाटा कैसे भी कपड़े पहने वो रतन टाटा ही रहेंगे
बस केवल मन का भाव चाहिए। इसी भाव को जागृत करने का प्रयास इस देश का नेतृत्व कर रहा है।
यदि हम यह संकल्प ले ले कि इंद्रिय सुख के लिए हम विदेशों से उपभोग वस्तुओं का आयात नहीं करेंगे
अपितु देश के अंदर बनी हुई विशेषतः स्थानीय वस्तुओं का उपभोग करेंगे तो यह आत्मनिर्भरता की ओर निश्चित
रूप से एक ठोस कदम होगा। इससे न केवल देश के अंदर लघु एवं कुटीर उद्योगों को बल मिलेगा अपितु विदेशी
विनिमय की बचत होगी जिसको अन्य अधिक आवश्यक वस्तुओं, सेवाओं व तकनीक (जैसे रक्षा से संबंधित,
संचार से संबंधित, परिवहन से संबंधित, प्रदूषण कम करने वाली तकनीक, शैक्षणिक प्रगति आदि के लिए) के
आयात में प्रयोग किया जा सकता है। यदि हमे आवश्यक वस्तुओं, सेवाओं व तकनीक के आयात के लिए तथा
चालू खाते के घाटे को पूरा करने के लिए विश्व बैंक या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से ऋण नहीं लेना पड़े तो यहां
आत्मनिर्भरता का ही एक रूप है। हम विदेशी विनिमय अपने देश में आमंत्रित करेंगे लेकिन अपनी शर्तों पर।
अपनी शर्तों पर आमंत्रित करने का मतलब है कि जो उचित है, न्यायोचित है, हमारी अर्थव्यवस्था के लिए
उपयुक्त है, वहीं विदेशी निवेश को देश में आने की अनुमति होगी।
इस देश में समाजवाद के नाम पर जो अनर्गल स्थितियां पैदा की गई हैं उन स्थितियों के अनुकूल विदेशी
निवेश नहीं लाना है। चीन की हाल ही में जो स्थिति हुई है कोविड-19 महामारी के कारण उससे चीन पर लोगों
का विश्वास घटा है। यदि हम विश्व की कुल जनसंख्या में से चीन की जनसंख्या को निकाल दो तो भारत की
जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का एक चौथाई हो जाती हैं। अतःनिश्चित रूप से भारत एक बहुत बड़ा बाजार
है। हमारे पास एक बहुत बड़ा उपभोक्ता वर्ग है। इस स्थिति में विदेशी निवेश आना निश्चित है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां पर हर धर्म और हर जातियों के लोग रहते हैं, जिनमें आपस में
सद्भाव और सौहार्द्र है और जो एक दूसरे के सहयोग करने की भावना से ओत-प्रोत रहते हैं। इससे अच्छी
सभ्यता और समाज विश्व में दूसरा कोई नहीं है। हमारे यहां आधारभूत संरचना की कमी और श्रम कानून में
कुछ सुधार की आवश्यकता आदि कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनके कारण विदेशी निवेशकों को कुछ चिंता है। अतः श्रम
कानूनों में कुछ परिवर्तनों की आवश्यकता है। यहां आधारभूत संरचना मे सुधार की आवश्यकता है। यदि हम
पिछले 5-6 वर्षों को देखें तो इन क्षेत्रों में हम काफी आगे बढ़ आयें हैं। आलोचकों को तो इसमें कमी दिखेगी हैं
क्योंकि वे कमियां ही ढूंढ रहे हैं। किंतु भौगोलिक रूप से इतने बड़े देश में सभी तक सभी प्रकार की आधारभूत
संरचना को पहुंचा पाना साल दो साल का विषय नहीं है क्योंकि, उदाहरण के लिए प्रत्येक गांव में बिजली
पहुंचेगी तो उपभोग भी बढ़ेगा, परंतु रातों-रात इतनी ऊर्जा का उत्पादन संभव नहीं। लेकिन जिस गति से भारत
में इन क्षेत्रों में सुधार आ रहा है, उससे तो यही लगता है कि भारत आत्मनिर्भरता की ओर पूरे आत्मविश्वास से
बढ़ने को तैयार है।
ऐसा नहीं है कि महीने दो महीने में भारत आत्मनिर्भर हो जाएगा। लेकिन भारत आत्मनिर्भरता के कई
सोपानों को पार कर चुका है और उसमें और तीव्र गति से आगे बढ़ने की क्षमता है। आत्मनिर्भरता के इन तूफानों
को निर्बाध रूप से पार करने के लिए यह आवश्यक है कि इस देश का नेतृत्व भाव-जीवी लोगों के हाथों में बना
रहे। हमें नकारात्मकता फैलाने वाले लोगों को हतोत्साहित करना है और देखना है कि हमारा समाज इनके
प्रभाव में ना आये। कोविड-19 के इस महामारी के समय मे बहुत सारे लोग गरीब, वंचित, पीड़ित और

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पलायन कर रहे श्रमिकों की मदद के लिए आगे आए और इनकी मदद करने के क्रम में स्वयं कोरोना पीड़ित हो
गए। ऐसा दुनिया में कहीं अन्यत्र देखने को नहीं मिला और यही हमारी समाज की शक्ति है। हमारे कुछ
अभिजात्य बुद्धिजीवी वर्ग, जो रहते तो भारत में हैं परंतु उनका आचार व्यवहार व चिंतन पश्चात समाज की
भांति हैं वे ही इस समाज शक्ति को नहीं पहचान पाते। यह वर्ग धीरे-धीरे समाप्त होने की कगार पर आ गया है।
अतः हमें इनकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। हमें आत्मविश्वास के साथ संकल्पबद्ध होकर लोगों में
उत्साह जगाने की आवश्यकता है।
भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि यहां के नागरिक आत्मनिर्भर हो। इसके लिए
एक रास्ता है ट्रिकलडाउन का, जिसे रूस ने अपनाया था, और दूसरा रास्ता है भारत का परंपरागत रास्ता
जिसका समर्थन महात्मा गांधी व दीनदयाल जी ने किया है। वह रास्ता यह है कि सर्वप्रथम व्यक्ति आत्मनिर्भर
हो और व्यक्ति के आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ राष्ट्र भी आत्मनिर्भर हो। पाश्चात्य शिक्षा व संस्कृति का प्रभाव
इस देश के नागरिकों पर यह पड़ा कि सभी व्यक्ति नौकरी करना चाहते हैं। हमें इस विचार से मुक्त होना होगा।
इस कोरोना संक्रमण के कारण नौकरी कितनी अस्थाई उपलब्धि है, इसका संज्ञान सभी को हो गया है। बहुत
बड़ी संख्या में गांवों से शहरों को जीविकोपार्जन के लिए श्रमिक, भूमिहीन कृषक व सीमांत कृषक पलायन करते
हैं। इनमें से कई लोगों के पास कौशल है परंतु आधुनिक उत्पादन प्रणाली उसे कौशल ही नहीं मानती। इस
स्थिति में उनके कौशल का उपयोग कैसे हो? जोत का आकार छोटा है परंतु परिवार के सदस्यों की संख्या
अधिक है अर्थात श्रमिक अधिक है तो श्रम गहन कौन सी कृषि करें जिससे की प्रति श्रमिक आय अधिक हो।
उदाहरण के लिए एक परिवार को जीवन निर्वाह के लिए खाद्यान्न कृषि करने पर एक बड़ी जोत चाहिए। परंतु
यदि एक छोटे से जमीन पर यदि फूलों की खेती की जाए या सब्जियों की खेती की जाए तो वर्ष भर में 1 से 3
परिवारों का जीविकोपार्जन हो सकता है। अतः मूल्य संवर्धित कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को
अपनी एजेंसियों को सक्रिय करना होगा क्योंकि सरकारी एजेंसियां हैं तो बहुत सी पर वे सभी उदासीन रहती
हैं ।
सरकारी संस्थाओं की उदासीनता व भ्रष्टाचार जगजाहिर है।शहरों से गांव लौटे श्रमिकों को मनरेगा के
अंतर्गत काम दिए जाने के सरकारों के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद अनेक स्थानों से भ्रष्टाचार की सूचनाएं आ रही
हैं। इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए समाज को खड़ा होना पड़ेगा, सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को आगे
आना होगा। हम अपने सामाजिक मंचों पर तो अपनी भूमिका बखूबी निभा देते हैं लेकिन जब अपने गांव
मोहल्ले का विषय आता है तो मौन रहते हैं। यह स्वभाव बदलना होगा इस कार्य में समय तो लगेगा लेकिन इस
पर आग्रह बनाने से यह बहुत बदलेगा।
शहरों से गांव लौटे लगभग तीस लाख श्रमिकों का स्किल मैपिंग के अनुसार कौशल का डाटा इकट्ठा
किया गया। इस स्किल मैपिंग में लगभग 6 से 6.5लाख दर्जी हैं। यह दर्जी बड़े शहरों में बड़ी-बड़ी कंपनियों के
लिए काम करते हैं जहां प्रतिदिन 400 से लेकर 500 रुपए कमाते हैं। यह लोग एक कमरे में 8 से 10 लोग एक
साथ रहते हैं अर्थात एक तरह का अमानवीय जीवन जी कर पैसे बचाते हैं ताकि अपने परिवार को पैसे भेज
सकें। प्रश्न है कि इन दर्जियों को रोजगार कैसे मिल सकता है। यदि हम बड़े-बड़े विदेशी ब्रांड के रेडीमेड कपड़े
पहनने से इंकार कर दे तो इन दर्जियों को रोजगार मिल सकता है। यदि हम भारत की कंपनियों द्वारा निर्मित
रेडीमेड कपड़े जिनकी गुणवत्ता थोड़ी निम्न है, को देशहित में सहने को यदि तैयार हो तो इन दर्जियों को
रोजगार मिल सकता है।
भारत सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की यह कहकर आलोचना हो रही है कि
इसमें से तो लगभग 0.8% या 1% ही राजकोषीय है बाकी बैंकों द्वारा ऋण पर निर्भर किया गया है। यह
आलोचना करने वाले यह मान रहे हैं कि जिस ढर्रे पर अर्थव्यवस्था चल रही थी उसी पर चलती रहेगी, जो लोग
जिन कारखानों से लौटकर गए हैं उन्हीं कारखानों में वापस आ जाएंगे। परंतु कारखाने वाले इतने उत्साह से

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काम नहीं करेंगे और यदि उनको घाटा हो गया है तो वह ऋण नहीं लेंगे अर्थात इस देश में अर्थव्यवस्था के ढांचे
में बड़ा परिवर्तन आने की पूरी संभावना है।
शहरों से गांव लौटे श्रमिक जो कुछ दिनों पहले तक ₹200 से लेकर ₹500 की मजदूरी कर रहे थे वे खुद
उद्यमी बन सकते हैं। लेकिन इसके लिए “जिला उद्योग केंद्रों” को सक्रिय करना होगा और उनकी जवाबदेही तय
करनी होगी। 1960 के दशक से भारत के प्रत्येक जिले में “जिला उद्योग केंद्र” है लेकिन उनकी निष्क्रियता के
कारण ही आज की पीढ़ी को इनके अस्तित्व के बारे में पता भी नहीं है। सरकारों को लोकल स्तर पर उद्यमिता
को बढ़ाना होगा और लोकल उत्पाद की ब्रांडिंग करनी होगी क्योंकि छोटे पैमाने पर उत्पादन करने वाले उद्यमी
अपने उत्पाद की ब्रांडिंग नहीं कर सकते। भारत सरकार ने पहले दूध व अंडे की ब्रांडिंग ( पीओ ग्लास फूल दूध
दूध दूध, संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे)की थी जिसके कारण भारत में डेयरी व पोल्ट्री उद्योग सफल हो गया।
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार प्रतापगढ़ के आंवले की, बनारस की साड़ी की, आगरा के पेठे की और मथुरा के
पेड़े की ब्रांडिंग कर सकती है।
आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिए व्यष्टि स्तर पर हमें अपने इंद्रिय सुखों से समझौता करना होगा जो
मानवता की प्रगति के लिए, हमारे समाज की प्रगति के लिए, और भारत की प्रगति के लिए आवश्यक है। हमे
जिस तकनीक या वस्तु को विदेशों से फिलहाल लेने की आवश्यकता है उसे लेना होगा किंतु जिनसे उत्पादकता
पर या समाज की सोच पर या हमारी शैक्षणिक प्रगति पर या हमारी सामरिक क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं
पड़ता है ऐसी चीजों पर हमे स्वदेशी का आग्रह बना लेना होगा। सामाजिक स्तर पर मनोबल बनाए रखना
होगा। लोगों के मन में यह भाव स्थापित करना होगा कि आत्मनिर्भरता उनकी पहुंच में है। सामान्यतः भारत
का नागरिक देश हित में त्याग करने को हमेशा तत्पर रहता है। अगर ना नुकुर करते हैं तो वह वर्ग करता है जो
अपने को ज्यादा पढ़ा-लिखा मानता है।
अतः हमें अपने समाज की आंतरिक शक्ति को जागृत करना है जिसको दीनदयाल जी ने “चिति” कहा
है। हमें इस मनोबल को बनाए रखना है। सामाजिक कार्यकर्ताओं को बुद्धिजीवी के फरेब में फंसे बिना पूरे
आत्मविश्वास के साथ आत्मनिर्भरता की इस यात्रा का नेतृत्व करना है, इसका परचम उठाए रखना है और
आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा स्थापित अधोसंरचना तंत्र को सक्रिय करना और
उसकी अकर्मण्यता को दूर करना है। उसको अधिक संवेदनशील बनाना है। जहां इस प्रशासनिक अधोसंरचना में
गैप दिख रहा हो उस गैप को त्वरित प्रभाव से भरना है। सरकार को भी यह काम करना है। केवल मौद्रिक
उपाय और राजकोषीय उपाय से यह नहीं होने वाला है। इसके लिए सहयोगी अधोसंरचना चाहिए। इस प्रकार
व्यक्ति, समाज और सरकार यह तीनों से मिलकर जो राष्ट्र बनता है उस राष्ट्र का समवेत प्रयास यदि बना रहा
तो भारत को आत्मनिर्भर होने से कोई नहीं रोक सकता, भारत की आत्म निर्भरता की यात्रा में कहीं कोई
चुनौती या बाधा नहीं डाल सकता।
जय भारत!
References:

  1. https://aatmanirbharbharat.mygov.in/
  2. https://www.business-standard.com/about/what-is-atmanirbhar-bharat-mission
  3. https://hal-india.co.in/Products/M__54
  4. Abhinav Singh,  Flight plan, Despite challenges, India’s sole aircraft manufacturer aims for the sky;THE
    WEEK , July 19, 2020
    https://www.theweek.in/theweek/business/2020/07/09/flight-plan.html
  5. HAL has concrete orders to build Su30, LCA Tejas and Chetak helicopters: Rajnath Singh, Jun 24, 2019,
    19:31 IST
    https://timesofindia.indiatimes.com/india/hal-has-concrete-orders-to-build-su30-lca-tejas-and-chetak-
    helicopters-rajnath-singh/articleshow/69930558.cms
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