केंद्र सरकार पिछले कुछ महीनों से अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए लगातार ऐसे कदम उठा रही है जो कि अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेंगे, और साथ ही यह कदम आर्थिक सुधारों को भी आगे बढ़ाने वाले हैं। यह भी एक बड़ा कारण है कि कोविड-19 से जूझ रही अर्थव्यवस्था के बावजूद शेयर बाज़ार लगातार नई ऊंचाइयां छू रहा है यह एक हद तक अर्थव्यवस्था में उद्योग जगत और निवेशकों के बढ़े हुए भरोसे को भी बताता है। मोदी सरकार में 2014 से ही वंचित वर्गों की बेहतरी के लिए उठाए गए थे। इनमें गरीबों के लिए आवास, शौचालय, बिजली, रसोई गैस, वित्तीय समावेशन एवं ग्रामीण सड़कों का निर्माण जैसे कई प्रयास शामिल थे। इनमें से कई कार्यक्रम अब भी जारी हैं। लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में भी मोदी सरकार लगातार नए मिशन पर काम कर रही है और काफी साहस पूर्ण कदम उठा रही है। ‘हर घर जल’ मिशन, खाद्य तेल मिशन, परिसंपत्ति मुद्रीकरण इत्यादि जैसे अनेक कदम भारतीय अर्थव्यवस्था की भविष्य की नई तस्वीर पेश कर रहे हैं, बशर्ते कि इन योजनाओं का सही क्रियान्वयन हो।
प्रधानमंत्री द्वारा 15 अगस्त, 2019 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यह घोषणा की गई थी कि अगले पांच वर्षों में सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी ढांचे पर 100 लाख करोड़ रुपये (1.4 ट्रिलियन डॉलर) का निवेश किया जाएगा।इस उद्देश्य के लिए वित्त वर्ष 2019-20 से 2024-25 तक प्रत्येक वर्ष के लिए राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) को तैयार करने हेतु सितंबर 2019 में आर्थिक कार्य विभाग में सचिव की अध्यक्षता में एक कार्य-बल का गठन किया गया था। दिसंबर 2019 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन के अंतर्गत 102 लाख करोड़ रुपए की आधारभूत परियोजनाओं की घोषणा की है।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना
24 अगस्त 2021 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 6 लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना की घोषणा की। यह पाइपलाइन नीति आयोग द्वारा अवसंरचना से संबंधित मंत्रालयों के परामर्श से विकसित की गई है। इसके तहत वित्तीय वर्ष 2022 से लेकर वित्तीय वर्ष 2025 तक की चार वर्ष की अवधि में केंद्र सरकार की मुख्य परिसंपत्तियों के जरिए 6 लाख करोड़ रुपये की कुल मुद्रीकरण क्षमता का अनुमान लगाया गया है। यह केंद्र सरकार की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन बजट का 14 प्रतिशत है। इस योजना के दायरे में 12 मंत्रालयों और विभागों की 20 तरह की संपत्तियां आएंगी, इनमें सड़क, रेलवे और बिजली क्षेत्र की परियोजनाएं प्रमुख हैं।
केंद्रीय बजट 2021-22 में स्थायी अवसंरचना निर्माण के वित्तपोषण के लिए वर्तमान में संचालित की जा रही सार्वजनिक अवसंरचना परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण की पहचान एक प्रमुख साधन के रूप में की गयी है। इसके लिए बजट में ब्राउनफील्ड अवसंरचना परिसंपत्तियों के सन्दर्भ में राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) तैयार करने का प्रावधान किया गया है। नीति आयोग ने अवसंरचना से जुड़े मंत्रालयों के परामर्श से एनएमपी पर रिपोर्ट तैयार की है। संपत्ति मुद्रीकरण कार्यक्रम का उद्देश्य नयी अवसंरचना तैयार करने के लिए निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करना है। इनमें राज्य सरकारों को नई अवसंरचना परियोजनाओं में तेजी लाने के लिए अपनी संपत्तियों के पुनर्चक्रण हेतु प्रोत्साहित करने की योजना भी शामिल है।
एनएमपी का उद्देश्य सार्वजनिक परिसंपत्ति के मालिकों के लिए इस कार्यक्रम के सन्दर्भ में एक मध्यम-अवधि रोडमैप प्रदान करना है। इसके साथ ही निजी क्षेत्र की परिसंपत्तियों के बेहतर उपयोग के लिए उनकी वर्तमान स्थिति तथा संभावनाओं के बारे में भी जानकारी दी गयी है। एनएमपी पर रिपोर्ट को दो खंडों में बांटा गया है। खंड-I एक मार्गदर्शन पुस्तिका के रूप में है, जिसमें परिसंपत्ति मुद्रीकरण के वैचारिक दृष्टिकोण और संभावित मॉडल का विवरण दिया गया है। खंड-II में मुद्रीकरण के लिए वास्तविक रोडमैप दिया गया है, जिसमें केंद्र सरकार के तहत मुख्य अवसंरचना परिसंपत्तियों की पाइपलाइन शामिल है।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन में सार्वजनिक क्षेत्र की वे आधारभूत परिसंपत्तियां सूचीबद्ध हैं जिन्हें निजी क्षेत्र को पट्टे पर दिया जाएगा। यह महत्वपूर्ण है कि घोषणा के मुताबिक योजना में कई अहम प्रतिबंध शामिल हैं। पहली बात, परिसंपत्तियों का स्वामित्व सरकार के पास बना रहेगा और पहले से तय पट्टा अवधि के समाप्त होने के बाद उन्हें वापस सरकार को सौंपना होगा। दूसरी बात, मुद्रीकरण पाइपलाइन में केवल उन्हीं परिसंपत्तियों को शामिल किया जाएगा जो पहले से संचालित हैं। सरकार का दावा है कि अगले चार वर्ष में 6 लाख करोड़ रुपये मूल्य की बुनियादी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण किया जाएगा। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह राशि परिसंपत्तियों का वास्तविक मूल्य दर्शाती है अथवा नहीं। परिसंपत्तियों के बाजार मूल्य सामने आने पर ही स्थिति स्पष्ट होगी। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के लिए प्रोत्साहन ढांचा बनाकर भी अच्छा किया है। इसके तहत राज्य सरकारों को परिसंपत्ति मुद्रीकरण प्रक्रिया से प्राप्त राशि का 33 प्रतिशत अतिरिक्त हिस्सा केंद्र सरकार के खजाने से दिया जाएगा।
सरकार का यह कदम उचित इसलिए भी है क्योंकि यह मुद्रीकरण केवल राजस्व जुटाने से संबंधित नहीं है बल्कि इसका संबंध सरकारी अवसंरचना या बुनियादी ढांचे के प्रभावी प्रबंधन से भी है। यह भावना कि ये संपत्तियां बेची नहीं जा रही हैं बल्कि उन्हें पट्टे पर दिया जा रहा है, सरकारों को प्रोत्साहित करेंगी कि वे उन्हें राजस्व समझें, न कि पूंजीगत प्राप्तियां, जिसे सरकारी क्षेत्र द्वारा अन्य पूंजी निर्माण में इस्तेमाल किया जा सकता है। परिसंपत्ति मुद्रीकरण की मूल योजना यह थी कि इसके जरिये मौजूदा सरकारी परिसंपत्तियों के मूल्य को इस्तेमाल किया जा सके, सरकार को यह आजादी मिले कि वह ऐसे समय पर अपना पूंजीगत व्यय बढ़ा सके जब निजी अवसंरचना निवेश कम है।
वैसे भूतकाल में व्यक्तिगत परिसंपत्तियों के मूल्यांकन से जुड़े मामलों और जमीन की कीमत से उनके संबंध को देखते हुए यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसी कौन सी व्यवस्था होगी जो पारदर्शी भी हो, लाभकारी भी हो और निजी क्षेत्र के लिए आकर्षक भी हो। चूंकि सीधी बिक्री एजेंडे में नहीं है, इसलिए एक तरह से यह पिछले दरवाजे से निजी-सार्वजनिक भागीदारी की वापसी भी कही जा सकती है। हालांकि पूर्व के कई वर्षों की घटनाओं में ऐसी साझेदारियां विश्वसनीय नहीं रही हैं। एक तथ्य यह भी है कि अब तक विनिवेश के मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है।
निश्चित रूप से यह बेहद साहसिक योजना है और इसमें काफी संभावना है। निजी क्षेत्र सरकारी क्षेत्र की आधारभूत परिसंपत्तियों में काफी रुचि रखता रहा है। पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन से संबद्ध इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट को अच्छी सफलता मिली है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण भी अगले महीने 5,100 करोड़ रुपये मूल्य का इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट शुरू करने वाला है। वस्तुतः इस योजना’ को सही ढंग से तैयार और क्रियान्वित करना सबसे आवश्यक है।
वाहन कबाड़ नीति या व्हीकल स्क्रैप पॉलिसी
13 अगस्त को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाहन कबाड़ नीति की घोषणा की। इससे देश की सड़कों से 15 से 20 वर्ष पुराने वाहन हटाने में मदद मिलेगी। इस नीति से भारत में लगभग 10,000 करोड़ रुपये का निवेश होने की संभावना है। इस नीति का शुभारंभ भारत की विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इस नीति के हिसाब से वाहनों को एक फिटनेस टेस्ट से गुजरना होगा. इसके लिए देशभर में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मोड में 400 से 500 वाहन फिटनेस सेंटर बनेंगे जबकि 60 से 70 रजिस्टर्ड स्क्रैपिंग सेंटर होंगे। किसी भी वाहन को फिटनेस टेस्ट के बाद वैज्ञानिक तरीकों से ही खत्म किया जाएगा।
इस नीति से कच्चे माल की लागत में कटौती होगी।पुरानी गाड़ियों से निकलने वाले कबाड़ से 99 प्रतिशत मेटल को रिकवर किया जा सकता है। देश में लगभग 22,000 करोड़ मूल्य के स्क्रैप स्टील का आयात किया जाता है। इस नीति से इसकी निर्भरता कम होगी। इलेक्ट्रिक सामान और कॉपर, लीथियम जैसा सस्ता कच्चा माल भी इस स्क्रैपिंग से मिलेगा। स्क्रैपिंग पॉलिसी नए वाहनों को 40 प्रतिशत तक सस्ता बनाएगी। इससे भारत को वाहन निर्माण का औद्योगिक केंद्र बनने में मदद मिलेगी।
पुरानी कार के रखरखाव व मरम्मत लागत और ईंधन दक्षता पर पैसे की बचत होगी। पुराने वाहनों और पुरानी तकनीक के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाएं और प्रदूषण कम होगा। इससे इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को बढ़ावा मिलेगा। इससे वाहन मालिक को नई कार खरीदते समय पंजीकरण शुल्क न और रोड टैक्स में भी छूट मिलेगी। स्पष्ट है कि वाहन सस्ते होने से अर्थव्यवस्था में वाहनों की मांग बढ़ेगी और निर्यात भी बढ़ेगा।
केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार इस निति से देश में स्क्रैपिंग अवसंरचना में 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश आने की संभावना है. फिटनेस सेंटर से जहां प्रत्यक्ष रोज़गार पैदा होगा, वहीं स्क्रैपिंग उद्योग को बढ़ावा मिलने से कई स्तर पर अप्रत्यक्ष रोज़गार भी पैदा होगा। इस नीति से देशभर में 35,000 से ज्यादा लोगों को रोज़गार मिलने की संभावना है।
राष्ट्रिय तिलहन मिशन
सरकार ने देश को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 11,000 करोड़ रुपये मूल्य का तिलहन मिशन शुरू करने की बात कही है। यह ऐसा कदम है जो बहुत पहले उठा लिया जाना चाहिए था। देश में सन 1990 के दशक से ही खाद्य तेल की कमी रही है और बहुत बड़े पैमाने पर हम खाद्य तेलों का आयात करते रहे हैं। आज भी भारत अपनी जरूरत का 70 प्रतिशत खाद्य तेल आयात करता है। मूल्य के हिसाब से यह पेट्रोलियम उत्पादों के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयात है। हाल के दिनों में मांग बढऩे और आपूर्ति स्थिर रहने के कारण दुनिया भर में खाद्य तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है।
योजना के तहत उत्पादकों को जरूरी कच्चा माल, तकनीक और जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। इसी खरीफ सत्र में किसानों को मूंगफली और सोयाबीन समेत विभिन्न तिलहन फसलों की अधिक उत्पादन वाले और बीमारी तथा कीटाणुओं से बचाव की क्षमता रखने वाले बीजों के मिनी किट किसानों को उपलब्ध कराने की योजना है। इसी वर्ष 6 लाख हेक्टेयर से अधिक अतिरिक्त क्षेत्र में तिलहन की फसल उगाई जाएगी। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तिलहन की फसल का कुल क्षेत्र भी उन इलाकों में बढ़ाने का प्रस्ताव है जहां पारंपरिक रूप से तिलहन की खेती नहीं की जाती है। दलहन तथा उपयुक्त फसलों के साथ मिलाकर तिलहन की बुआई की जाएगी।
जल जीवन मिशन
‘हर घर जल’ मुहैया कराने के कार्यक्रम को एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया जा सकता है। जल जीवन मिशन के तहत हर परिवार को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने की पहल इस सरकार की कार्यसूची में काफी ऊपर है। ग्रामीण भारत में 18.93 करोड़ परिवार हैं जिनमें से सिर्फ 17 प्रतिशत के पास ही नल से जल आता है। बाकी 15.70 करोड़ परिवार यानी लगभग 83 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को जल जीवन मिशन के दायरे में लाने का लक्ष्य है। यह संख्या बिजली कनेक्शन देने के लिए निर्धारित लक्ष्य के पांच गुने से भी अधिक है। इस योजना का आवंटन भी लगभग 3.60 लाख करोड़ रुपये रखा गया जिसमें से 2.08 लाख करोड़ रुपये केंद्र सरकार देगा।
इस योजना की घोषणा प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2019 को की थी। गांव के प्रत्येक घर तक नल से जल पहुंचाने की इस महत्वाकांक्षी योजना को 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य है। जुलाई 2021 तक देश भर में इसने अपना 41 प्रतिशत लक्ष्य हासिल भी कर लिया था। इससे ग्रामीण परिवारों को भी नियमित तौर पर अच्छी गुणवत्ता वाला पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा। नल से पेयजल घरों तक पहुंचने से सबसे अधिक सुविधा महिलाओं को होगी, इससे उनकी समस्याओं में काफी कमी आने की संभावना है, जिन्हें साफ पानी की तलाश में काफी दूर तक जाना पड़ता है। ग्रामीण समुदायों को जीवन की गरिमा प्रदान करने में भी यह मददगार होगी। इस मिशन के तहत देश भर में प्लंबर, राजमिस्त्री, पंप मैकेनिक एवं गुणवत्ता नियंत्रण विशेषज्ञों को तैयार करने पर भी जोर दिया गया है। भारत में छह लाख से अधिक गांव हैं। यदि प्रत्येक गांव में 10 नए रोजगार अवसर पैदा हुआ तो भी ग्रामीण भारत में 60 लाख से अधिक नए रोजगार पैदा होंगे।
रिटेल क्षेत्र को एमएसएमई का दर्जा
सरकार ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए रिटेल क्षेत्र को सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र एमएसएमई का दर्जा दिया है। यह एक बहुत महत्वपूर्ण और बड़ा कदम है, क्योंकि इससे करोड़ों लोगों को बैंकों से आसानी से ऋण मिल पाएगा और इस क्षेत्र की अनेक परेशानियां दूर करने में मदद मिलेगी। पहली बार सरकार ने खुदरा और थोक व्यापारियों को एमएसएमई का दर्जा दिया है इनका कुल सकल घरेलू उत्पाद में योगदान लगभग 29% है। अब खुदरा और थोक व्यापारियों को उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराने की अनुमति होगी।
आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाते हुए सरकार का एक और कदम चौंकाने वाला रहा। भारत सरकार ने 6 जुलाई को सहकारिता मंत्रालय नाम के एक नए मंत्रालय के गठन की घोषणा की। भविष्य में इसके एक ऐतिहासिक निर्णय होने की पूरी संभावना है। हालांकि देश में सहकारिता की स्थिति में पिछले कुछ दशकों में लगातार गिरावट आई है। आज भारत में सक्रिय लगभग 8 लाख सहकारी समितियों से 30 करोड़ से अधिक लोग जुड़े हुए हैं। भारी भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक दखल की वजह से सहकारी समितियों की स्थिति में गिरावट आई है जिसकी मार पारदर्शिता, प्रबंधन एवं शासन पर पड़ी है। सहकारी समितियों का सुधार उन्हें सदस्य-केंद्रित, लोकतांत्रिक, स्व-शासित एवं वित्तीय रूप से व्यवस्थित संस्थान बनाने में मददगार होगा।
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